November 22, 2024

संवाददाता।
देशभर में विजय दशमी का त्योहार असत्य पर सत्य की जीत के रूप में मनाया जाने वाले त्योहार पर रावण का दहन किया जाता है। लेकिन कानपुर में डेढ़ सौ साल पुराना रावण का अनोखा मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर को केवल दशहरे के दिन खोला जाता है, सुबह से शाम तक भक्त यहां दर्शन करने आते हैं। सैकड़ों भक्त रावण की पूजा आरती करके आशीर्वाद लेते हैं।

बल, बुद्धि, यश की प्राप्ति के लिए लोग दशहरे के दिन दर्शन करते हैं। दशहरा के दिन सुबह मंदिर खोला जाता है। इसके बाद पूरे एक साल के लिए मंदिर फिर दशहरे तक बंद कर दिया जाता है।

कानपुर शहर के प्रयाग नारायण शिवाला स्थित कैलाशपति मंदिर के करीब ही रावण का मंदिर बना हुआ है। मंदिर में बनी दशानन की मूर्ति के 10 सिर बने हुए हैं। आसपास के रहने वाले लोगों ने बताया कि उनकी पिछली कई पीढियां से इस मंदिर के बारे में बताते रहे हैं। उनके अनुमान से यह मंदिर डेढ़ सौ साल से भी ज्यादा पुराना है। कुछ लोगों ने बताया कि 1890 में मंदिर को यहां के ट्रस्टी के द्वारा बनवाया गया था। वर्तमान में मंदिर की देखरेख अनिरुद्ध प्रसाद बाजपेई करते हैं।

इसके साथ ही कैलाशपति के इस प्रांगण में रहने वाले तकरीबन 100 से ज्यादा घर के लोग यहां पर दशहरे के दिन दशानन का पूजन आरती का इंतजाम करते हैं। लोगों ने बताया की दूर-दूर से महाज्ञानी दशानन रावण के पूजन आरती के लिए लोग आते हैं। दशानन से बुद्धि, यश और बल का आशीर्वाद मांगते हैं।

दशहरे के दिन जब रावण का यह मंदिर खोला जाता है। विशेष रूप से इस मंदिर में मूर्ति को यहां आने वाले भक्त तरोई के फूल चढ़ाते हैं। इसके साथ ही भक्त यहां पर आकर रावण के इस मंदिर के सामने एक दीपक भी जलते हैं। अधिकांश भक्तों के साथ उनके बच्चे भी इस मंदिर में दर्शन करने के लिए दशहरे के दिन पहुंचते हैं। क्योंकि दशानन महाज्ञानी और बुद्धिमान थे। इसलिए बच्चे यहां आकर बुद्धि ज्ञान का आशीर्वाद मांगते हैं।

हर साल मंदिर की देखरेख करने वाले साफ सफाई और सजावट करने वाले शालू जायसवाल ने बताया कि मंदिर में केवल दशहरे के दिन सुबह 5 बजे आरती की जाती है। इसके बाद भक्त सुबह 6 बजे से पहुंचने लगते हैं। सौरभ ने बताया कि वह अपने दादा के जमाने से इस मंदिर के बारे में सुनते आए हैं। जो परंपरा आज भी उसी तरह से चली आ रही है। उन्होंने बताया कि दशहरा के दिन मंदिर को सुबह खोल दिया जाता है।

लोग दर्शन करते हैं, लेकिन जब शाम को रावण का दहन कर दिया जाता है, तो इस मंदिर को पुनः ताला लगाकर बंद कर दिया जाता है। एक साल तक मंदिर बंद रहता है। विजय दशमी के दिन फिर से मंदिर खोला जाता है।

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