काम क्रोध मोह मद तुम्हारे, मन से उनका जाना| रावण पर विजय कहाँ होगी, मर्म न इसका जाना||
राम सिया लक्ष्मण छोड़ चले, अयोध्या थी उदासी| वन वन फिरे वो चौदह बरस, आँखें सबकी प्यासी|| राज धर्म को निभा चले वो, त्याग करे सुख सारा| लंका विजय किए बनवासी, गूंज उठा जग सारा|| सत्य धीरता राम लिए हैं, तिमिर मन से हटाना| रावण पर विजय कहाँ होगी, मर्म न इसका जाना||
नारी का सम्मान जहाँ था, ऐसी इक लंका थी| सीता की रक्षा वो करती, नहीं कभी शंका थी|| मानव वानर संग चले तो, सेना राम अपारा| सागर ने भी शीश झुकाया, पुल बन पार उतारा|| मन में वो छवि लिए सिया की, राह विजय की पाना| रावण पर विजय कहाँ होगी, मर्म न इसका जाना||
कितने बाण चलाये तुमने, कितने अवगुण मारे| वीर धीर ज्ञान लिए दस सिर, अहंकार से हारे|| मन का रावण जिंदा जब तक, राम नाम तुम भूले| रावण राम लड़ाई मन में, सत्य जीत को छूले|| विजय पर्व है फिर से आया, अंतस जब पहचाना| रावण पर विजय कहाँ होगी, मर्म न इसका जाना||