October 18, 2024

संवाददाता।
कानपुर।
नगर में एनआईए ने ताबड़तोड़ छापेमारी करके पीएफआई से जुड़े संदिग्ध डॉ. अबरार अहमद और उनके परिवार के तीन सदस्यों को हिरासत में लेकर 9 घंटे तक पूछताछ की है। पूछताछ के दौरान पता चला कि सिमी पर बैन लगने के बाद सभी आरोपी पीएफआई से जुड़कर सक्रिय हो गए थे। हालांकि पूछताछ के बाद एनआईए टीम ने डॉ अबरार को छोड़ दिया। मूलगंज थाना क्षेत्र के हीरामन पुरवा निवासी डॉ. अबरार अहमद और उनके परिवार के तीन सदस्यों को एनआईए की टीम ने छापेमारी करके बुधवार को पकड़ा। मूलगंज थाने में एनआईए के साथ ही खुफिया विभाग, मिलिट्री इंटेलीजेंस समेत अन्य जांच एजेंसियों ने पूछताछ की और डॉ. अबरार को छोड़ दिया। सूत्रों के मुताबिक डॉक्टर अबरार पहले सिमी में सक्रिय थे, सिमी पर प्रतिबंध लगने के बाद डॉ. अबरार ही नहीं नगर में सिमी के अन्य सदस्य पीएफआई से जुड़े और उसे कानपुर में फैलाया। यही वजह है कि कानपुर में सीएए-एनआरसी प्रदर्शन के दौरान बवाल या कानपुर में 3 जून की हिंसा, दोनों ही घटनाओं में में ही पीएफआई का हाथ सामने आया था। पुलिस ने हिंसा भड़काने वाले पीएफआई के 5 एजेंट को अरेस्ट करके जेल भेजा था। पूछताछ के बाद एनआईए की टीम ने छोड़ा तो मीडिया कर्मियों ने डॉ. अबरार अहमद से बात करने की कोशिश की। उनसे सवाल पूछा कि आखिर आपका इस पूरे मामले में क्या कहना है, क्या आप पीएफआई के सक्रिय सदस्य हैं…? इस तरह के कई सवाल पूछे गए, लेकिन अबरार चुप्पी साधे रहे। बल्कि उनके परिवार के लोगों ने भी कोई सफाई नहीं दी। सूत्रों के मुताबिक दिल्ली में पिछले साल टेरर फंडिंग को लेकर एक केस दर्ज हुआ था। जिसकी तहकीकात एनआईए कर रही है। छानबीन के दौरान डॉ. अबरार और उसके परिवार वालों का नाम सामने आया है। टीम ने पहले डॉ. अबरार के बेटों से पूछताछ की। इसके बाद डॉक्टर से पूछताछ शुरू हुई। डॉ. अबरार की क्लीनिक के बगल में इस्लामिक बुक स्टॉल है। यहां भी एनआईए टीम ने तलाशी ली और टीम पांच किताबें अपने साथ लेकर गई है। बाबूपुरवा में भी एनआईए को एक युवक की तलाश है। इसका भी टेरर फंडिंग में नाम आया है। एनआईए की टीम बाबूपुरवा भी गई थी लेकिन वहां उसे कोई संदिग्ध नहीं मिला।स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) से कानपुर का पुराना नाता है। 25 अप्रैल 1977 को मोहम्मद सिद्दीकी ने अलीगढ़ में सिमी का गठन किया, जो जमात-ए-इस्लामी-ए- हिंद का छात्र संगठन था। 9/11 के आतंकी हमले के बाद आतंकी संगठन घोषित करके प्रतिबंधित कर दिया गया। वर्ष 1999 में सिमी का एक बड़ा सम्मेलन कानपुर में हुआ था, इसके बाद यह संगठन शहर में तेजी के साथ फैला। वर्ष 2001 के दंगों में सिमी के सदस्यों ने ही तत्कालीन एसडीएम सीपी पाठक की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके बाद चाहे सीएए-एनआरसी, 3 जून 2021 की हिंसा में भी पीएफआई के सदस्यों का नाम सामने लगातार देश विरोध गतिविधियों या कानपुर में हिंसा फैलाने में नाम सामने आया था। राष्ट्रीय जांच एजेंसी के सूत्रों का दावा है कि पीएफआई के कई सदस्य पहले स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी और इंडियन मुजाहिदीन जैसे प्रतिबंधित संगठनों से जुड़े थे। सिमी पर बैन लगने के बाद ये सभी पीएफआई से जुड़ गए और अब पीएफआई पर भी प्रतिबंध लगने के बाद कानपुर और उत्तर प्रदेश ही नहीं देश भर में देश विरोधी गतिविधियों और हिंसा भड़काने में इसके सदस्यों की भूमिका सामने आई है।अहिरवां इलाके से 14 दिसंबर 2018 में एटीएस ने हिजबुल के आतंकी कमरुज्जमा को गिरफ्तार किया था। इसने घंटाघर सुतरखाना स्थित सिद्धिविनायक मंदिर समेत अन्य पब्लिक प्लेस में फिदायीन हमला करके कानपुर को दहलाने की साजिश में था। लेकिन इससे पहले एटीएस ने गिरफ्तार कर लिया था। पूछताछ के बाद एटीएस ने कमरुज्जमा के दोस्त शहनवाज आलम के अलावा सईदुल आलम को भी पकड़ा था। देश में 50 से भी अधिक सीरियल बम ब्लास्ट का आरोपी आतंकी डॉ. बम उर्फ जलीस अंसारी को एसटीएफ की टीम ने 17 जनवरी 2020 को कानपुर से गिरफ्तार किया था। डॉ. जलीस अंसारी को पैरोल मिली थी। इसी दौरान वह मुम्बई से बुधवार को फरार हो गया। उसके फरारी की सूचना से देश में खलबली मच गई। इसके बाद उसे कानपुर से गिरफ्तार कर लिया गया था। पूछताछ में सामने आया था कि दुनिया के दस बड़े आतंकी संगठनों के लिए डॉ. जलीस अंसारी ही बम बनाता था। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *