November 22, 2024

संवाददाता।
कानपुर।
कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र के क्षेत्रीय अध्यक्ष प्रकाश पाल के मुताबिक नारी शक्ति वंदन अधिनियम के बाद ये निर्णय लिया गया है कि भाजपा की महिला मोर्चा विंग 52 विधानसभाओं में जनसभाओं का आयोजन करेंगी। 8 से 30 अक्टूबर तक ये जनसभाएं आयोजित की जाएंगी। इसके अलावा प्रत्येक बूथ पर नारी शक्ति यात्रा भी महिला नेत्रियों द्वारा निकाली जाएगी। इन जनसभाओं में देश और प्रदेश की बड़ी महिला नेता ही मुख्य अथिति होंगी। भाजपा महिलाओं के साथ ही साथ एससी व एसटी वर्ग को भी साधने में जुट गई है। अक्टूबर माह के अंतिम सप्ताह में भाजपा एक बड़ा अनुसूचित वर्ग को लेकर कानपुर में आयोजन करने जा रही है। इसमें 50 हजार से अधिक अनुसूचित वर्ग के लोगों को बुलाया जा रहा है। इन आयोजनों में महिला मोर्चा व अनुसूचित मोर्चा के अंतर्गत सभी सांसद, विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, जिला पंचायत सदस्य, नगर पालिका अध्यक्ष, नगर पंचायत अध्यक्ष सहित सभी महिला मोर्चा एवं अनुसूचित मोर्चा के क्षेत्रीय पदाधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। लोकसभा चुनाव से पहले महिला आरक्षण बिल को लाकर भाजपा ने आधी आबादी को लेकर बड़ा दांव खेला है। इससे उन महिला नेत्रियों को बल मिलेगा, जो काफी समय से राजनीति में सक्रिय हैं और उन्हें चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिल सका। इस आरक्षण के बाद उत्तर प्रदेश की विधानसभा में 403 सीटों में 134 सीटें और लोकसभा की 80 में से 26 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी। वहीं इस 33 फीसदी आरक्षण में एससी और एसटी वर्ग की महिलाओं के लिए भी 33 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया है। दरअसल, भाजपा का कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र अभेद्य किला बन चुका है। बीजेपी ने यहां 2017 के विधानसभा चुनाव में कानपुर-बुंदेलखंड की 52 विधानसभा सीटों में से 47 सीटों पर कमल खिलाया था। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में कानपुर-बुंदेलखंड की 10 लोकसभा सीटों में से 10 सीटों पर शानदार जीत दर्ज की थी। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने ज्यादातर सीटों पर कमल खिलाया। इस जीत के पीछे भी बीजेपी महिला मोर्चा की कार्यकर्ताओं का अहम रोल था। यहीं से शुरुआत कर भाजपा मजबूत आंकड़े जुटाना चाहती है। विधानसभा और लोकसभा चुनावों में चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ज्यादा वोटिंग करने के लिए पोलिंग सेंटर तक पहुंची। बात करें 2019 के ही लोकसभा चुनाव में देश में 16 राज्य ऐसे थे, जहां महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा था। यूपी की 80 में 36 सीटों पर पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा महिलाएं वोट करने पहुंचीं थीं। महिला मुख्यमंत्री होने के बाद भी मायावती सरकार में महिलाओं की भागीदारी महज 5% थी। मुलायम सरकार में 3.60% तो अखिलेश सरकार में 2.60% थी। वहीं योगी 1.0 की सरकार के पहले मंत्रिमंडल में 5 यानी 10.60% महिलाओं को मंत्री बनाया गया था। मंत्रिमंडल विस्तार और एक महिला मंत्री की मृत्यु के बाद यह संख्या घटकर तीन रह गई थी। मौजूदा कार्यकाल में 52 में पांच महिलाएं मंत्री हैं, जो कुल टीम का 9.61% हैं। सदन में आंकड़ा एक-तिहाई हुआ तो यहां भी संख्या बदलने की उम्मीद बढ़ सकती है। वहीं मौजूदा समय में यूपी से 12 महिला लोकसभा में प्रतिनिधित्व करती हैं। इनकी कुल 15% हिस्सेदारी है। इस बिल के आने के बाद राजनैतिक पार्टियों के हासिये पर चली रहीं महिला नेत्रियों को जहां बढ़ावा मिलेगा, वहीं सियासी दलों की संगठनात्मक तस्वीर भी दिखेगा। बड़े सियासी दलों में लोकसभा या विधानसभा चुनावों में 10% से 15% टिकट ही महिलाओं के हाथ आती है। 2022 में यूपी में कांग्रेस ने एक प्रयोग जरूर किया था और 40% टिकट महिलाओं को दिया था। लड़की हूं, लड़ सकती हूं… कैंपेन लॉन्च किया था। लेकिन, इसका नतीजा कुछ नहीं निकला। हालांकि, कांग्रेस का जनाधार न होने के चलते यूपी में सिर्फ एक महिला ही विधायक बन सकीं। वहीं भाजपा ने 45 टिकट, सपा ने 42 और बसपा ने 37 टिकट महिलाओं को दिए थे। कुल 560 महिला उम्मीदवार विधानसभा चुनाव में उतरी थीं, जिनमें 47 को जीत मिली थी। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *