संवाददाता।
कानपुर। भूकंप बार बार क्यों आते है यह जानने की बात है? मंगलवार को दो भूकंप के झटके महसूस किये गये। भूकंप का केंद्र नेपाल का बझांग था। भूकंप का जो पहला झटका था उसकी तीव्रता 5.3 थी। और दूसरे झटके की तीव्रता 6.2 थी। उत्तर प्रदेश में इसकी तीव्रता 5.5 थी। आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर जावेद मलिक ने बताया है कि आने वाले समय में यूपी में इससे भी तेज भूकंप के झटके महसूस किए जाएंगे। इसके लिए हम सभी को तैयार रहना है। उत्तर प्रदेश में भूकंप के हाई रिस्क जोन पर 61 जिले हैं। उन्होंने बताया कि यूपी में कभी भूकंप नहीं आता है। यहां पर सिर्फ भूकंप के झटकों को महसूस किया जाता है। दरअसल, यह पृथ्वी टेक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है। इसके नीचे तरल पदार्थ लावा है। यह प्लेट्स लगातार तैरती रहती हैं। जब यह आमने-सामने आती है या फिर ऊपर नीचे टकराती हैं, तो ऐसे में नीचे से निकलने वाली ऊर्जा बाहर आती है। तब भूकंप आता है। यह प्लेट जब-जब हलचल करेंगी, तब-तब भूकंप का असर देखने को मिलेगा। उन्होंने कहा कि 1505 में सबसे बड़ा भूकंप आया था जिसकी तीव्रता लगभग 8.3 थी। इसके बाद सन 1984 में जो भूकंप आया था उसकी तीव्रता 8.2 थी। इसके पश्चात जो भूकंप 2015 में आया था उसकी तीव्रता 7.8 थी। ये भी भूकंप नेपाल की तरफ ही आया था। इस अनुसार आने वाले समय में फिर से सभी तैयार रहें कि एक बार फिर से तेज तीव्रता का भूकंप जरूर आ सकता है। इसका असर भी देखने को मिलेगा। यह भूकंप कब आएगा, यह कह पाना बहुत ही मुश्किल है। उन्होंने बताया कि यदि तेज भूकंप आता है तो भूकंप का जो केंद्र बिंदु होगा वह तो प्रभावित होगा ही इसके अलावा जो नगर गंगा के किनारे बसे हैं। उन क्षेत्रों में भूकंप का असर अधिक देखने को मिलेगा। जब कभी भूकंप आता है, तो रेत हमेशा नीचे की ओर धंसती है। ऐसे में जब रेत धंसती है, तो बिल्डिंग का ढांचा भी बुरी तरह से हिल जाता है। इस कारण रेत वाले क्षेत्र भूकंप में ज्यादा प्रभावित होंगे। खास तौर से जो ऊंची बिल्डिंग है, उन्हें ज्यादा नुकसान पहुंचेगा। उन्होंने बताया कि जिन बिल्डिंग की पार्किंग खुले में बनी होती हैं और पिलर के सहारे पूरी बिल्डिंग खड़ी की जाती है। उन बिल्डिंग को ज्यादा खतरा होता है। लेकिन, जिन बिल्डिंग की पार्किंग अंडरग्राउंड होती है। उन बिल्डिंग को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचता है। अंडरग्राउंड पार्किंग में चारों तरफ दीवारें खड़ी रहती हैं। उसके सहारे ऊपर बिल्डिंग बनाई जाती है। लेकिन, जो ओपन पार्किंग होती है वहां पर केवल पिलर के सहारे पूरी बिल्डिंग खड़ी होती है। इसलिए उनमें ज्यादा खतरा मंडराता है। उन्होंने बताया कि जब भूकंप आता है, तो उससे दो प्रकार की वेब उत्पन्न होती है। हाई फ्रीक्वेंसी वेब और लो फ्रिक्वेंसी वेब। हाई फ्रीक्वेंसी वेब ज्यादा दूर तक नहीं जा पाती है। उनकी क्षमता कम होती है, लेकिन लो फ्रिक्वेंसी वाली वेब काफी दूर तक जाती है। यह वेब ऊंची इमारत में कंपन पैदा करती है, जबकि हाई फ्रीक्वेंसी वेब छोटी इमारतों में कंपन उत्पन्न करती है। इसके पीछे का कारण है कि जो हाई फ्रीक्वेंसी वेब होती है। उसकी एनर्जी बहुत जल्दी डाउन हो जाती है। इस कारण यह ज्यादा दूर तक नहीं जाती है। लो फ्रिक्वेंसी वेब बहुत दूर तक ट्रैवल करती हैं। भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि भूकंप का खतरा हर जगह अलग-अलग होता है। इस खतरे के हिसाब से देश या प्रदेश को चार हिस्सों में बांटा गया है। जोन-2, जोन-3, जोन-4 और जोन-5 नाम दिया गया है। सबसे कम खतरे वाला जोन-2 है। सबसे ज्यादा खतरे वाला जोन-5 है। जोन-5 में यूपी के जिले नहीं हैं। जोन दो के अंतर्गत ललितपुर, झांसी, महोबा, बांदा, कौशांबी, प्रयागराज के अलावा आगरा, इटावा, औरैया, कानपुर नगर, फतेहपुर, प्रतापगढ़ है। जोन 3 में सोनभद्र, चंदौली, गाजीपुर, वाराणसी, जौनपुर, आजमगढ़, गोरखपुर, सुल्तानपुर, रायबरेली, अयोध्या, उन्नाव, लखनऊ, बाराबंकी, सीतापुर, हरदोई, कन्नौज, मैनपुरी, फिरोजाबाद, एटा, फर्रुखाबाद, मिर्जापुर है। जोन 4 में सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बागपत, बिजनौर, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, रामपुर, मुरादाबाद, बुलंदशहर, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, महाराजगंज, कुशीनगर, पीलीभीत, सहारनपुर, लखीमपुर खीरी, बदायूं, बहराइच, गोंडा, मथुरा, अलीगढ़, बरेली, बस्ती, संतकबीरनगर, देवरिया और बलिया जिला भूकंप के हाईरिस्क में रहते हैं। यानी यहां सबसे ज्यादा खतरा है। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड की बात करें, तो 1505 में भूकंप का बड़ा असर देखने को मिला था। उस समय यहां पर लगभग 8.3 तीव्रता से भूकंप आया था। इसके बाद 1803 में 7.5 तीव्रता का भूकंप आया था। इस हिसाब से देखा जाए, तो यहां पर 300 से 500 साल के बीच भूकंप के झटके आते हैं। वह भी तेज तीव्रता वाले, इसलिए भविष्य में यहां पर भी तेज तीव्रता वाला भूकंप आएगा।