संवाददाता।
कानपुर। नगर में मंगलवार सुबह शव लेने घरवाले पोस्टमॉर्टम हाउस पहुंचे थे, तभी पुलिस भी पहुंच गई। बॉडी सील करने से पहले घरवालों ने शव को देखा तो दोनों पैर गायब थे। इसके बाद परिजन भड़क गए और हंगामा कर दिया। परिजनों ने आरोप लगाया कि जब हम लोगों ने डॉक्टरों से बेटे के पैर मांगे, तो धमकाने लगे। यही नहीं, मृतक के पिता और नाबालिग भतीजे को बंधक बना लिया और जबरन सादे कागज में अंगूठा लगवा लिया। इस मसले पर सीएमओ डॉ. एनसी त्रिपाठी ने कहा कि मामले की जांच की जा रही है। इसमें जो भी दोषी होगा। उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। संजय नगर कैंट निवासी रिक्शा चालक जगदीश यादव का बेटा हर्ष यादव (18 वर्ष) सोमवार रात चुंगी क्रॉसिंग के पास ट्रेन की चपेट में आ गया था। उसके दोनों पैर कट गए थे। सूचना पर घरवाले मौके पर पहुंचे। वहां पर पुलिस पहले से मौजूद थी। घरवाले पुलिस के साथ हर्ष को एम्बुलेंस में रखकर और उसके दोनों पर एक पॉलीथिन में पैक करके हैलट अस्पताल ले लाए। यहां पर परिजनों ने पैरों को डॉक्टर के हवाले कर दिया। थोड़ी देर बाद हर्ष की मौत हो गई। परिजनों ने कहा कि हर्ष की मौत के बाद डॉक्टरों ने बिना बताए शव को सील कर पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया, जब हम पोस्टमॉर्टम हाउस पहुंचे, तो वहां पर बेटे के पैर नहीं थे। मृतक के बहनोई रविंद्र कुमार ने बताया, “रात में हर्ष को डॉ. संजय कुमार के देखरेख में भर्ती कराया था। सुबह जब हम लोगों ने पोस्टमॉर्टम में पैर नहीं देखे, तो वापस हैलट अस्पताल आए। डॉक्टर से पूछा तो पहले तो डॉक्टर एक दूसरे पर बात डालते रहे। जब हंगामा शुरू किया, तो वार्ड में मौजूद अहमद अली नाम के युवक ने मारपीट करने की धमकी दी। अस्पताल से चले जाने को कहा।” ईएमओ डॉ. अनुराग राजोरिया ने मामले की छानबीन करनी शुरू की। उनको पता चला कि जिस डॉक्टर के अंडर में मरीज भर्ती हुआ था, उस डॉक्टर ने पैरों को डिस्पैच करने के लिए नर्स को हैंड ओवर किया था। किस नर्स को हैंड ओवर किया गया है, यह कोई नहीं बता पाया। मृतक की बहन शालू यादव ने बताया,” भाई हर्ष के दोनों पैर कट गए थे। खून निकल रहा था। आधे घंटे तक हैलट के डॉक्टरों ने पैर का कोई भी उपचार शुरू नहीं किया। कहा कि जब हड्डी के डॉक्टर आएंगे, तब वह देखेंगे। इसके बाद कुछ डॉक्टरों ने सिर की चोट को देखा। टांके लगा दिए। पैरों की तरफ कोई भी उपचार शुरू नहीं हुआ। इसके कारण उसकी तड़पकर मौत हो गई।” मृतक के बहनोई रविंद्र कुमार ने बताया, “जैसे ही हर्ष को भर्ती कराया। उसके बाद डॉक्टर ने एक पर्चा दवा का थमा दिया। बाहर से 750 रुपए की दवा लाए, इसमें ग्लव्स और कॉटन भी शामिल था। यह दवा मरीज में इस्तेमाल हुई कि नहीं यह भी नहीं पता, जब हर्ष की मौत हो गई, तो उसके बाद भी दवा के लिए कोई नहीं बता पाया।” मृतक के पिता जगदीश यादव ने बताया,”रात में जब बेटे को लेकर पहुंचे, उसके थोड़ी देर बाद इमरजेंसी में तैनात चार डॉक्टरों ने कमरे के अंदर बुलाया। जबरदस्ती सादे कागजों में अंगूठा लगवा लिया। साथ में परिवार के एक लड़के से भी कागज में हस्ताक्षर करा लिए। वह किस चीज के कागज थे, मुझे कुछ नहीं पता।”