- संजीव कुमार भटनागर
सागर मंथन जब हुआ
परिणाम बहुत सुखद हुआ,
चौदह रत्नों के साथ तब
एक रत्न भी बाहर आया|शिल्पकला में पारंगत थे वो
अभियंता चतुर सुजान वो,
भव्य द्वारिका निर्माण किया
श्री विश्वकर्मा भगवान वो|इंद्रप्रस्थ में माया मंडप का
पांडवों के लिए निर्माण किया,
दुर्योधन ने पग धरा था स्थल पे
जाकर गिरा था माया जल में|जग में हंसी जब हुई उसकी तो
महाभारत का प्रादुर्भाव उस पल में,
ऐसा था निर्माण प्रबल वो
जितना चाहा था उसने छल से|अंगिरा पुत्र ब्रहस्पति थे मामा
माँ भावना की अद्भुत संतान,
ब्रह्मा विष्णु महेश जैसे आपको
मानते भगवान वेद पुराण|हम भी तो आपका पूजन करते
कल पुर्जो मशीन को पूजते,
तेरी महिमा के गीत गाते
मन से तुझको प्रणाम करते|