फसलें आयी ले महक, बैसाखी का पर्व।
धरती मुस्काती हरी, झूमे खेत सगर्व॥
सुन गेहूँ की लहरियाँ, हवा करे अठखेल।
हर्षित हुये किसान अति, हुआ तपन से मेल॥
ढोल नगाड़े बाजते, नाचे पूरा गाँव।
बैसाखी के रंग में, हर मन पाए ठांव॥
गुरु का दर्शन साथ हो, भर दे मन विश्वास।
बैसाखी में झूमता, पंथ, प्रेम, इतिहास॥
रवि की किरणें छू रहीं, स्वर्णमुखी हर बाल।
बैसाखी है गीत-सी, जीवन का सुर ताल॥
माह वैशाख दिन प्रथम, लिए रंग उल्लास|
करते गिद्दा भांगड़ा, लेकर खुशियाँ आस||
सूर्य संक्रमण मेष में, मनता है नव वर्ष|
पोहेला बोशाख विशु, बिहू पुथण्डू हर्ष||
जन्म खालसा का दिवस, प्यारे छकते पाँच|
गुरु गोविंद के शबद, रक्षा देश उवाच||
बैसाखी का था दिवस, जलियाँवाला बाग|
डायर की गोली चली, लगा पर्व पर दाग||
जान निहत्थों की गयी, मरे वृद्ध अरु बाल|
जान बचा के भागते, गोली खाते भाल||
खुशियों के इस पर्व पर, जले याद का दीप|
श्रद्धांजलि अर्पण करें, जो थे हृदय समीप||
फसल कटाई हो चली, बजे धरा पर ढोल|
बैसाखी के पर्व में, खुशी भरी अनमोल||
—संजीव कुमार भटनागर।