कानपुर। अपनी कप्तानी में उत्तर प्रदेश की रणजी क्रिकेट टीम को 1997-98 में बीस वर्ष बाद फाइनल में पहुंचाने के बाद कोचिंग में 2007-08 तथा 2008-09 में टीम को खिताब की दहलीज पर लाने वाले ज्ञानेंद्र पाण्डेय के अनुभव का लाभ लेने से प्रदेश क्रिकेट संघ पता नही क्यों परहेज करता नजर आ रहा है। अन्तर्राष्ट्रीुय स्तर के क्रिकेट का अनुभव रखने वाले इस खिलाडी को केवल प्र्रशिक्षक रखने तक ही अमादा दिखायी दे रहे हैं जबकि उनके अनुभव के आगे प्रदेश क्रिकेट में कोई भी पूर्व खिलाडी आसपास भी फटकता नही दिखायी देता है। 30 अगस्त् से आयोजित होने वाली प्रदेश की टी-टवेन्टी क्रिकेट लीग प्रतियोगिता के लिए उन्हे केवल टीम का प्रशिक्षक घोषित कर सीमित दायरे में बांधने का काम बखूबी किया गया है। जबकि प्रदेश के क्रिकेटरों का मानना है कि ज्ञानेन्द्र पान्डेय को कम से कम लीग करवाने वाली आयोजन समिति में मुख्य किरदार निभाने के लिए शामिल किया जाना चाहिए था। गौरतलब है कि ज्ञानेंद्र पाण्डेय ने क्रिकेट का ककहरा लखनऊ के बाद कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में उत्तर प्रदेश खेल निदेशालय के हास्टल में सीखा। 1988-89 में वह भारत की अंडर-19 टीम के साथ पाकिस्तान दौरे पर गए थे। बांए हाथ के स्पिन गेंदबाज के रूप में प्रथम श्रेणी क्रिकेट की 1989 में शुरुआत करने वाले ज्ञानेंद्र बेहतरीन आलराउंडर के रूप में स्थापित हुए। उनको 1996-97 में उत्तर प्रदेश की रणजी टीम का कप्तान बनाया गया। उनके नेतृत्व में टीम ने 1997-98 में मुम्बई को उसी की सरजमीं में हराकर रणजी ट्राफी फाइनल में जगह बनाई थी। इसके बाद से उत्तर प्रदेश का क्रिकेट ग्राफ मानो ऊपर उठता चला गया। मोहम्मद कैफ,, सुरेश रैना, आरपी सिंह, पीयूष चावला, प्रवीण कुमार तथा सुदीप त्यागी के बाद भुवनेश्वर कुमार ने टीम इंडिया में जगह बनाने में सफलता पाई। उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन से जुडे क्रिकेटरों को भरोसा था कि उत्तर प्रदेश रणजी टीम के क्रिकेटरों को ज्ञानेंद्र के अनुभव का विशेष लाभ मिलेगा लेकिन वह नही मिल सका है। बतातें चलें कि ज्ञानेन्द्र पान्डेय के पास अब प्रशासनिक और क्रिकेट प्रतियोगिताओं के प्रबन्ध तन्त्र का गहरा अनुभव प्राप्तं है। वह प्रदेश स्तर की कई क्रिकेट प्रतियोगिताओं का सफल संचालन भी बतौर प्रशासनिक और प्रबन्धन के तौर पर कर चुके हैं। क्रिकेट जगत में उन्हें एक सकुशल व अनुभवी आयोजक के रूप में पहचाना जाता है। वह लगभग डेढ दशक से क्रिकेट की प्रतियोगिताओं का सफल आयोजन करवाने में महत्वहपूर्ण भूमिका का निर्वाहन करते आ रहे हैं।
ज्ञानेंद्र पांडेय की कप्तानी में उप्र टीम वर्ष 1998 उपविजेता बनी थी। उन्होंने ग्रीनपार्क के क्रिकेट हॉस्टल से अपने क्रिकेट कॅरियर की शुरुआत की थी। उन्होंने भारतीय टीम के लिए दो एक दिवसीय मैच खेले हैं 24 मार्च 1999 को जयपुर में पाकिस्तान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय फलक पर पहचान बना चुके थे। बाएं हाथ से बल्लेबाजी और स्पिन गेंदबाजी करने वाले ज्ञानेंद्र ने 117 प्रथम श्रेणी मुकाबलों में 5348 रन और 165 विकेट लिए हैं। ज्ञानेंद्र ने अंडर-19 विश्व कप विजेता टीम के चयन में अहम भूमिका निभाई थी। बीसीसीआई की जूनियर चयन समिति में अपने कार्यकाल के दौरान उत्तर प्रदेश के नौ क्रिकेटरों को जूनियर इंडिया टीम में जगह दिलाने में सफल रहे। रणजी ट्राफी में प्रदेश के बाहर के पेशेवर कोच रखने के बाद भी टीम के लगातार गिरते प्रदर्शन को देखते हुए एसोसिएशन के कई पदाधिकारी काफी दिनों से ज्ञानेंद्र पाण्डेय को फिर से उत्तर प्रदेश सीनियर टीम का कोच बनाने पर विचार कर रहे हैं लेकिन अफसोस एक धडा उनकी सेवांए लेने कतराता नजर आ रहा है। इस बारे में यूपीसीए के सचिव अरविन्द श्रीवास्तव से फोन पर बात करने की कोशिश हर बार की तरह ही नाकामयाब रही।