March 14, 2025

आ स. संवाददाता 

कानपुर। उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ के खिलाफ कई शिकायतों के बाद भी उसपर किसी प्रकार की कार्यवाई न किए जाने और उसपर मेहरबानी दिखा रहे बीसीसीआई को अब आईना दिखाते हुए चुनौती पेश कर दी गयी है। गोरखपुर के एक क्रिकेट प्रेमी ने बीसीसीआई को मेल भेजकर एक बार फिर से यूपीसीए के खिलाफ चुनौतीपूर्ण शिकायत दर्ज करवायी है। गोरखपुर के शिकायतकर्ता ने बोर्ड के सचिव को मेल भेजकर पुन: यूपीसीए के भीतर फैले भ्रष्टाचार एवं खिलाड़ियों के शोषण के विरुद्ध तत्काल नैतिक कार्रवाई की मांग दोहरायी है। शिकायतकर्ता के भेजे गए मेल में कहा कि उसे  साफ तौर पर बीसीसीआई के प्रति तो पूरा विश्वास था जो अब कार्यवाही न किए जाने के चलते टूटने के कगार पर आ गया है। शिकायतकर्ता ने अपनी मांग में कहा है कि यूपीसीए और राजीव शुक्ला द्वारा खिलाड़ियों के साथ किए जा रहे अमानवीय व्यवहार, भ्रष्टाचार, और फंड की लूट के खिलाफ बार-बार शिकायतें दर्ज कराने के बावजूद, बीसीसीआई की ओर से न तो कोई जवाब दिया जा रहा है, न ही किसी प्रकार की कार्रवाई की जा सकी है। उन्होंने बोर्ड में कार्यधिकारियों को चुनौती भरे अन्दाज में मेल किया है कि कमजोर इच्छाशक्ति वाले अधिकारी बनकर रह गए हैं, जो सत्ता के आगे झुके हुए दिखायी दे रहे हैं। उन्होंने बोर्ड को एक जिम्मेदार संस्था मानते हुए ईमानदारी से कार्य करने की अपेक्षा जतायी है। 

शिकायतकर्ता उपेन्द्र यादव के अनुसार यूपीसीए के खिलाफ शिकायतों का पुलिन्दा पहुंचा दिया गया है लेकिन अभी तक कोई भी अधिकारी कार्रवाई करने का साहस नही दिखा सका है। उन्होनें कहा है कि यूपीसीए के खिलाफ शिकायतों को नजरअंदाज करना या पूर्व सचिव और उपाध्यीक्ष राजीव शुक्ला को संरक्षण देना, बोर्ड की नैतिक कमजोरियों को दर्शाता है।बोर्ड को खिलाड़ियों का “संरक्षक” बनना चाहिए, न कि भ्रष्ट अधिकारियों का “सहयोगी”। यदि आप अपने पद की गरिमा और देश के प्रति कर्तव्य को भूल गए हैं, तो यह पूरे क्रिकेट समुदाय के साथ विश्वासघात है।

उपेन्द्र यादव ने मेल में भेजे गए कुछ कडवे शब्दों में दर्शाया है कि यह कल्पना करने की बात है कि यदि बोर्ड के अधिकारियों के अपने बेटे-बेटियों से टीम में चयन के नाम पर रिश्वत मांगी जाती तो उनपर क्या गुजरती। यूपीसीए के भीतर खिलाडियों के सपनों को बेचा जा रहा है।मेल के माध्यम से उन्होंने एक बार फिर से यह मांग उठायी है कि यूपीसीए के भ्रष्टाचार एवं खिलाड़ियों के शोषण के विरुद्ध तत्काल नैतिक कार्रवाई के लिए कमेटियों को निर्देशित किया जाय जिससे दूध का दूध पानी का पानी हो सके। पत्राचार में साफ तौर पर कहा गया है कि राजनीतिक चापलूसी या कागजी कार्रवाई नहीं, बल्कि कड़े फैसले की उम्मीद रखी जाती हैं। यदि 15 दिनों के भीतर यूपीसीए के खिलाफ जांच शुरू नहीं हुई, तो क्या आपका नाम इतिहास में “खिलाड़ियों के रक्षक” के रूप में लिखा जाना चाहिए या “भ्रष्टाचार के सहयोगी” के रूप में?उन्होंने यह भी चुनौती दी है कि याद रखने की बात है कि”बीसीसीआई” कोई साधारण संस्था नहीं- यह करोड़ों युवाओं के सपनों का मंदिर है। यदि इस मंदिर को भ्रष्टाचार के कीचड़ से सने हाथों से लूटने देंगे, तो ऊपर वाले के दरबार में सिर्फ यूपी के खिलाड़ी ही नहीं, बोर्ड के अधिकारियों से भी जवाब मांगा जाएगा।

यूपीसीए के सचिव अरविन्द श्रीवास्तव का इस मेल के बारे में जवाब है कि संघ हर चुनौती के लिए तैयार है।