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आ स. संवाददाता
कानपुर। इंदिरा नगर निवासी कारोबारी राकेश अग्रवाल का बेटा देवेंद्र अग्रवाल थैलीसीमिया की बीमारी से पीड़ित था। 18 साल तक लगातार वह उसका ब्लड बदलवाते रहे, लेकिन वह अपने बच्चे को नही बचा पाए। उनकी इकलौती संतान तो उनसे हमेशा के लिए दूर हो गई, लेकिन अब कोई बच्चा बीमारी से दम न तोड़े इसके लिए कारोबारी दंपत्ति जंग लड़ रहे है। राकेश व उनकी पत्नी मोना थैलीसीमिया से पीड़ित बच्चों के लिए अब तक 10 बार ब्लड डोनेट कर चुके है।
डिवनिटी आपर्टमेंट निवासी राकेश अग्रवाल का पैकिंग मैटेरियल का व्यापार है। राकेश ने बताया कि उनकी पत्नी मोना ने वर्ष 1989 में बेटे को जन्म दिया, तो घर खुशियों से भर गया। लेकिन यह खुशियां ज्यादा समय की नहीं थी। डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि बेटा थैलीसीमिया जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है। इकलौते बच्चे के ठीक न होने की खबर पाकर उन पर मानों दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, लेकिन राकेश व मोना ने हिम्मत न हारी और हर कठिन परिस्थितियों से लड़ने की ठानी। राकेश बताते है कि बेटे को जिंदा रखने के लिए उन्हें हर 15 दिनों में ब्लड बदलवाना होता था।
मोना ने बताया कि जरूरत पड़ने पर कई बार लोगों के सामने हाथ फैलाए, कुछ ने मदद की तो कुछ ने साफ इंकार कर दिया। वह पहले मरियमपुर हाॅस्पिटल में ब्लड बदलवाते थे, इसके बाद उन्हें जानकारी हुई कि लखनऊ पीजीआई में ब्लड डोनेट करने से आसानी से ब्लड मिल सकता है। जिसके बाद व लखनऊ जाने लगे। दंपत्ति 4-4 बार ब्लड देकर बच्चे की जिंदगी बचाने से जूझ रहे थे।
आयरन बढ़ने पर शरीर काला पड़ने लगता, जिसके लिए 24 घंटे पेट में इंजेक्शन लगते थे। मोना ने बताया कि इस दौरान बेटा दर्द से कराहता रहता था, महंगे–महंगे इंजेक्शन मुंबई से आते थे। राकेश ने बताया कि इसके बाद उनके भाई व दोस्तों समेत 12 लोगों की चेन ब्लड डोनेशन के लिए तैयार की, हालांकि वर्ष 2008 में बेटे की मौत हो गई।
जिसके बाद कारोबारी दंपत्ति ने ठाना की थैलीसीमिया से पीड़ित परिवार अब ब्लड से परेशान न होने पाएं, जिसके बाद उन्होंने 10 ब्लड थैलीसीमिया से पीड़ित बच्चों के लिए ब्लड डोनेट किया। इसके बाद वह लायंस क्लब ऑफ कानपुर विशाल संस्था से जुड़े और 250 यूनिट ब्लड पीड़ित बच्चों के लिए डोनेट कराया।