December 28, 2025

—यूपीसीए के पूर्व सचिव के खिलाफ नियमों और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के उल्लंघन पर कार्रवाई की मांग।

—पैन कार्ड के अनुसार 20 जुलाई 1957 अंकित है तो राज्यसभा रिकार्ड के अनुसार 13 सितम्बर 1959 दर्ज करवाने का है इस विषय मे शिकायत आरओसी कानपुर को 13/09/2021 और 04/10/2021 को प्रस्तुत की जा चुकी है।

आ स. संवाददाता  

कानपुर। उत्तर प्रदेश के पूर्व सचिव के खिलाफ बीसीसीआई के नियमों और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के उल्लंघन के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग की गयी है। अलीगढ क्रिकेट से जुडे एक पूर्व अधिकारी ने बीसीसीआई के साथ ही एथिक्स कमेटी को मेल के माध्यम से शिकायत दर्ज करवा कर कार्रवाई की मांग दोहरायी है। इससे पहले भी पूर्व सचिव के खिलाफ कई बार बीसीसीआई से शिकायत दर्ज करवायी गयी है। मेल में बोर्ड के पदाधिकारियों का ध्यान आकृष्ट करवाया गया है कि पूर्व सचिव बीसीसीआई के नियमों और विनियमों, विशेष रूप से खंड 3(बी)(1)(आई) और 6(5)(एफ) (बीसीसीआई मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन के पृष्ठ 22 और 29 पर संदर्भित) के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी 9 अगस्त 2018 के आदेश के स्पष्ट उल्लंघन करते आ रहे हैं। मेल में पूर्व सचिव के लोढा समिति की सिफारिशों के उल्लंघन का भी जिक्र करते हुए उसपर अमल कराने की गुजारिश की गयी है। मेल में राजीव शुक्ला द्वारा किए गए नियम के उल्लंघनों का विवरण इस प्रकार दर्शाया गया है कि पूर्व सचिव 2002 में सहयोजित सदस्य (मतदान अधिकार के बिना) के रूप में यूपीसीए में शामिल हुए, जब यूपीसीए सोसायटी अधिनियम के तहत पंजीकृत था। वह 2005 में, स्थायी सदस्यता प्रदान करने के लिए इसे अवैध रूप से एक निजी लिमिटेड कंपनी में परिवर्तित करने के बाद वे यूपीसीए के निदेशक बन गए। उनपर सबसे बडा आरोप अपनी उम्र के दस्तावेजों में हेर फेर का है पूर्व सचिव की उम्र के दस्तावेजों में पैन कार्ड के अनुसार 20 जुलाई 1957 अंकित है तो राज्यसभा रिकार्ड के अनुसार 13 सितम्बर 1959 दर्ज करवाने का है। उनकी अयोग्यता के संबंध में एक शिकायत आरओसी कानपुर को 13/09/2021 और 04/10/2021 को प्रस्तुत की जा चुकी है।उन पर यह भी आरोप है कि उन्होंने यूपीसीए के निदेशक के रूप में 17 साल तक काम किया, स्वीकार्य सीमा से अधिक कार्य किया और बीसीसीआई नियम 6(5)(एफ) का उल्लंघन किया।यही नही प्रशासकों की समिति (सीओए) की 26 जुलाई 2019 की बैठक के विवरण में स्पष्ट रूप से कहा गया है “ऐसे मामलों में जहां राज्य संघ एक कंपनी के रूप में पंजीकृत है, निदेशक मंडल राज्य संघ की सर्वोच्च परिषद होगी। सितंबर 2006 से जून 2020 तक, उन्होंने निदेशक के रूप में अपनी भूमिका के अलावा, 15 वर्षों तक यूपीसीए के सचिव के रूप में भी कार्य किया। जबकि वह 24 दिसंबर 2020 को बीसीसीआई के उपाध्यक्ष चुने गए इसके बाद वह 18 अक्टूबर 2022 को पुनः बीसीसीआई उपाध्यक्ष चुने गए। कुल मिलाकर, 24 दिसंबर 2023 तक वह इस पद पर 9 साल पूरे कर लेंगे, जिससे वह बीसीसीआई के नियमों के तहत पद पर बने रहने के लिए अयोग्य हो जाएंगे। इसके बावजूद, भी पूर्व सचिव राजीव शुक्ला की विभिन्न भूमिकाओं में निरंतर उपस्थिति जानबूझकर गैर-अनुपालन को उजागर करती है।उनके कार्यकाल को देखा जाए तो वह यूपीसीए में निदेशक के तौर पर 17 वर्षो तक काबिज रहे, इसके अलावा वह निदेशक पद के साथ-साथ संघ में 15 वर्षो तक सचिव रहे। बीसीसीआई के विभिन्न पदों पर कुल मिलाकर वह 24 दिसंबर 2023 तक 9 वर्षो तक काबिज रहे हैं। वह प्रदेश और बोर्ड में कुल 21 वर्षो तक जो क्रिकेट प्रशासन की भावना और नियमों का उल्लंघन भी दर्शाता है।इन उल्लंघनों के बावजूद, वह नियम 6(5) (एफ) के स्पष्ट उल्लंघन में बीसीसीआई उपाध्यक्ष के पद पर बने हुए हैं। इसके अतिरिक्त, यूपीसीए के मात्र आजीवन सदस्य के रूप में, जिनके पास कोई आधिकारिक पद नहीं है, वे बीसीसीआई उपाध्यक्ष के अपने पद का दुरुपयोग करके यूपीसीए की एजीएम की अध्यक्षता करते हैं और खुद को बीसीसीआई में यूपीसीए का प्रतिनिधि नियुक्त करते हैं, जो कि गैरकानूनी है।वह अब आने वाले समय में नियमों को ताख पर रख सचिव या कोषाध्यक्ष नियुक्त होने के लिए सभी प्रकार के हथकण्डे अपनाने को तैयार दिखायी दे रहे हैं। शिकायतकर्ता ने बीसीसीआई के सचिव और कोषाध्यक्ष के पदों के लिए आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए, बोर्ड से यह मांग की है कि वह बीसीसीआई के नियमों का पालन न करने के कारण किसी भी पद के लिए चुनाव न लड़ें या उस पर कब्जा न करें। इन उल्लंघनों के संबंध में किसी भी प्रकार की नरमी यह दर्शाएगी कि बीसीसीआई असंवैधानिक प्रथाओं का समर्थन करता है, जिससे हमें न्याय को कायम रखने के लिए कानूनी कार्रवाई करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। इन उल्लंघनों को प्रमाणित करने वाले सहायक दस्तावेज संलग्न हैं। शिकायतकर्ता ने बोर्ड से आग्रह किया है कि बीसीसीआई के नियमों का पालन करने के लिए तत्काल कार्रवाई करें, जिससे भारतीय क्रिकेट प्रशासन की अखंडता बनी रहे।

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