आ स. संवाददाता
कानपुर। फसल अवशेष जलाने से भूमि में उपलब्ध जैव विविधता समाप्त होने के साथ ही किसान मित्र कीट केंचुआ नष्ट हो जाते है। यह जानकारी शुक्रवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र दलीप नगर के मृदा वैज्ञानिक डॉ. खलील खान ने दी। उन्होंने बताया कि खरीफ फसल की कटाई के उपरांत जो किसान भाई फसल अवशेष जला देतें है, इससे भूमि में उपलब्ध जैव विविधता समाप्त हो जाती है और इसके साथ ही मिट्टी में होने वाली रासायनिक क्रियाए भी प्रभावित होती है। उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि कार्बन- नाइट्रोजन एवं कार्बन—फास्फोरस का अनुपात बिगड़ जाता है। जिससे पौधों के पोषक तत्व ग्रहण करने में कठिनाई होती है। भूमि की संरचना में क्षति होने से पोषक तत्वों की समुचित मात्रा पौधों को उपलब्ध नहीं होने से जल निकासी संभव नहीं हो पाती है। उन्होंने कहा कि मिट्टी में उपलब्ध कार्बनिक पदार्थ का नुकसान होता है। और मित्र कीट केंचुआ नष्ट हो जाते हैं। तथा फसल अवशेषों को आग लगाने से जनधन की हानि भी होती है और पेड़ पौधे जलकर नष्ट हो जाते हैं। उन्होंने किसान भाई से अपील करते हुए कहा कि फसल अवशेषों के मृदा में मिलाने से मिट्टी में जैव विविधता बनी रहती है। मृदा में उपस्थित मित्र कीट शत्रु कीटों को खाकर नष्ट कर देते हैं। तथा मृदा में जीवांश कार्बन की मात्रा बढ़ती है और फसल उत्पादन अधिक होता है। उन्होंने कहा कि किसानों द्वारा फसल अवशेष जलाने के बजाय भूसा बनाकर रखने पर जहां एक ओर उनके पशुओं के लिए चारा उपलब्ध होगा। वहीं अतिरिक्त फसल अवशेष को बेचकर किसान आय बढ़ा सकते हैं।