कानपुर। बीसीसीआई के सचिव को बोर्ड की ओर से उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ को जारी बडी धनराशि के दुरुपयोग को रोकने और बोर्ड के उपाध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी कार्यरत रहने की शिकायत एक बार फिर से की गयी है। अलीगढ क्रिकेट संघ से जुडे निवर्तमान सचिव प्रदीप सिंह ने बोर्ड के सचिव से बिन्दुरवार तरीकों से अवगत कराया है कि प्रदेश संघ में किसी भी संवैधानिक पद पर न रहने के बाद भी वह अपना नियन्त्रण रखे हुए हैं। उन्होंने हाल ही में यूपीपीएल के उदघाटन अवसर पर संघ के अध्यक्ष को बौना बनाकर मैदान में उनका अपमान करने का काम भी किया। शिकायतकर्ता ने बोर्ड सचिव को यह भी अवगत करवाया है कि साल 2016 में, बीसीसीआई ने गाजियाबाद में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम के विकास के लिए यूपीसीए को 22.60 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की थी। आठ वर्ष बीत जाने के बाद भी, यह परियोजना अभी भी अधूरी है, जिसमें भूमि अधिग्रहण और अन्य बुनियादी ढांचे से संबंधित समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। यही नही 29 जून, 2024 को हुए संघ के एपेक्स काउंसिल की बैठक की कार्यवृत्त में, निम्नलिखित प्रमुख खामियां पाई गई हैं जिसमें कार्यवाई की आवश्यकता है:
1. अधूरी भूमि अधिग्रहणः ग्राम सभा की एक महत्वपूर्ण भूमि का अधिग्रहण अभी तक नहीं किया गया है, जिससे स्टेडियम की परियोजना के लिए स्थल अधूरा है। अभी तक लैंड यूज़ कृषि ही दर्ज है अतः स्टेडियम का नक्शा पास नहीं हो सकता है।
2. अधूरी बुनियादी संरचनाः उच्च वोल्टेज वाली बिजली की लाइनों को स्थानांतरित करना बाकी है, जिसका अनुमानित खर्च 3.87 करोड़ रुपये है। अगर वहां उच्च वोल्टेज की बिजली की लाइनें हैं, तो भूमि का अधिग्रहण क्यों किया गया? यह UPCA की गलत मंशा को दर्शाता है। इसमें पहले सरकार से लाइन बिछाने का पैसा लिया गया और अब लाइन हटाने का पैसा UPCA से दिलवा रहे है इसकी भी जांच जरूरी है।
3. लंबित रिफंड और देरी से निर्माण कार्य: GDA से 2.5 करोड़ रुपये की रिफंड राशि अभी तक प्राप्त नहीं हुई है और जमीन की सफाई, समतलीकरण, और बाउंड्री वाल का निर्माण कार्य अभी तक शुरू नहीं हुआ है। उनके अनुसार, सभी समस्याओं का समाधान होने के बाद बाउंड्री वाल का निर्माण किया जाएगा, जिसका मतलब है कि अगले 10 वर्षों में भी स्टेडियम बनने की कोई उम्मीद दिखायी नहीं दे रही है। बीसीसीआई के ज्ञापन और अनुच्छेद (MOA) की धारा 6 (3) और 6 (4) (1) के अनुसार, राजीव शुक्ला का बीसीसीआई के उपाध्यक्ष पद पर बने रहना अवैध है। यह नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है, जिससे बीसीसीआई की प्रतिष्ठा और साख पर बुरा असर पड़ सकता है। यूपीसीए के सचिव के रूप में भी सेवा की, कुल मिलाकर 15 वर्षों तक, निदेशक के रूप में 17 वर्षों तक सेवा, बीसीसीआई के उपाध्यक्ष के रूप में कार्यकाल 9 वर्ष 10वा वर्ष चल रहा है।
उन्होनें बोर्ड के सभी अधिकारियों को मेल भेजकर यह मांग भी की है कि बोर्ड संघ के कार्यों की निगरानी और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र प्रशासक की नियुक्ति करे जिससे सभी कार्य आसानी से सम्पादित हो सकें। वित्तीय अनियमितताओं का पता लगाने के लिए नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा व्यापक ऑडिट आवश्यक है, ताकि धन का सही उपयोग सुनिश्चित किया जा सके इसके लिए कैग से आडिट करवाया जाए। यूपीसीए के अधिकारियों की कार्यप्रणाली की जांच की जानी चाहिए और उन्हें जिम्मेदार ठहराने के लिए कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।इस गंभीर स्थिति के कारण क्रिकेट और इसके हितधारकों की सुरक्षा के लिए तत्काल सुधारात्मक उपायों की आवश्यकता है।अब देखना यह दिलचस्पं होगा कि बोर्ड इन शिकायतों पर कितना अमल करने का काम करेगा।