
चपल चंद्र चाँदनी में, चमके झील का नीर,
थिरक थिरक मचल रही, विकल हृदय की पीर।
कलानिधि की कला दिखे, शरद पूनम की रात,
स्नेहिल सोम स्पर्श शीतल, अमृत अतुल बरसात।
निखर निशा निहार रही, मदिर महि मोहिनी,
सजे सोम सोलह कला, धवल धरा सोहिनी।
प्रकृति प्रभात आभा लिए, सजे थाल में खीर,
अंबर अवनि आकर मिले, सलिल सरिता तीर।
मन में मधुरिम मिठास ले, अमृत अंबर से बरसे,
शरद शीतल श्वेत विभा, प्रकृति पपीहा मन हरषे।
सुख स्वास्थ्य सागर खिले, पूनम निशा निराली,
अद्भुत अनुपम आश्विन माह, प्रेम पूर्णिमा मतवाली।
संजीव कुमार भटनागर










