October 18, 2024

कानपुर। शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन भक्तों ने माता कूष्माण्डा का पूजन कर उनसे रोग,शोक और विनाश से मुक्ति का वरदान मांगा। संसार में यश की प्राप्ति के लिए भी भक्तों ने मॉं को मनाने का काम पूजन करके किया। मान्यता है कि नवरात्रि के चौथे दिन रविवार को मॉं कूष्माण्डा का विशेष पूजन करने से भक्तों को उनकी आयु, यश, बल और बुद्धि प्राप्त होती है। मान्यता यह भी है कि नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्माण्डा् की पूजा करने वाले साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और भक्तों को सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मॉं कूष्मांण्डा को लेकर ऐसी मान्यता है पढ़ने वाले छात्र यदि कुष्मांडा देवी की पूजा करें तो उनके बुद्धि विवेक में वृद्धि होती है। भक्तों ने मॉं कूष्माण्डा की पूजा फल, फूल, धूप, दीप, हल्दी, चंदन, कुमकुम, दूर्वा, सिंदूर, दीप, अक्षत आदि से की। शास्त्रों में लिखे गये उनकी सबसे पसन्दीदा भोग वस्तु मालपुए के  प्रसाद का भोग लगाया गया और उनसे मन्नत मांगी। शहर के बाराह देवी मंदिर, जंगली देवी मंदिर, तपेश्वरी मंदिर और काली मठिया मंदिर में भी भक्तों ने देवी मां के दर्शन किए। कल्याणपुर के आशा माता मंदिर, मंधना के राहू माता मंदिर तथा नारामऊ और दामोदर नगर के वैष्णो माता मंदिर में भक्तों ने मां को चुनरी और प्रसाद अर्पित कर अपने सफल जीवन के लिए वरदान मांगा।

नवरात्रि के चौथे दिन भक्तों ने देवी के चतुर्थ स्वरूप कूष्माण्डा माता का पूजन विधि विधान से किया और उनसे जीवन को सफल बनाने के लिए मन्नत मांगी। प्रात: आरती के साथ मंदिरों में शंख,घन्टे और घडियाल की आवाज सुनाई देने लगी। माता के दर्शन के लिए दिनभर मंदिरों में भक्तों के पहुंचने का सिलसिला जारी रहा जो देर शाम तक चलता रहा।  प्रमुख मंदिरों व घरों में श्रद्धालुओं ने माता कूष्मांडा को माल-पुआ का भोग लगाकर धन-धान्य का आशीर्वाद मांगा।सुबह से शुरू हुआ पूजा का क्रम देर शाम तक चलता रहा। आरती के दौरान माता के जयकारों से वातावरण भक्तिमय हो गया। भक्तों ने मां के मुस्कुराते हुए इस स्वरूप की पूजा कर खुशहाली का वरदान मांगा। पूजा का यह क्रम घरों के साथ ही मंदिरों में भी देर शाम तक चला। भक्तों ने मां को प्रसन्न करने के लिए लाल रंग के फूल और भोग चढ़ाया।वहीं भोग में लाल रंग का फल और मिठाई भी भोग में लगाई गई। इसके बाद चार कन्याओं को भोज कराया गया। वहीं दुर्गा शक्तिपीठ में भी सुबह छह बजे से पूजा शुरू हुई। इसके बाद सप्तशती का पाठ और हवन किया गया।