• ग्रीनपार्क के आयोजनों से लेकर वित्तीय मदद तक कानपुर को ही तवज्जो, बाकी संघ बोले—“हमें भुला दिया गया”

संवाददाता
कानपुर। उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (यूपीसीए) के 41 जिला संघों में अब खुलकर असंतोष पनपने लगा है। वजह—आला कमान का एक ही जिले कानपुर क्रिकेट एसोसिएशन (केसीए) पर लगातार मेहरबानी लुटाना। आरोप है कि पिछले चार सालों से ग्रीनपार्क में होने वाले लगभग हर अंतरराष्ट्रीय और घरेलू आयोजन में केसीए चेयरमैन को ही सुपर बॉस की भूमिका में आगे रखा गया, जबकि बाकी जिलों को न तो मौका मिला और न सहयोग।
जिला संघों का कहना है कि यूपीसीए शीर्ष नेतृत्व “एक जिले प्रेम” में इस कदर लिप्त है कि अब अन्य जिलों को बराबरी का अवसर मिलना तो दूर, उनका नाम तक योजनाओं में नहीं लिया जाता।
एक जिले को लगातार आयोजनों की जिम्मेदारी, वित्तीय सहायता, संसाधन वितरण और चयन-परीक्षण में प्राथमिकता दिए जाने को लेकर कई संघों में उबाल है। कुछ पदाधिकारियों ने तंज कसा—
“यूपीसीए अब यूनाइटेड नहीं, यूनिक जिला क्रिकेट एसोसिएशन बन चुका है।”
जानकारी के अनुसार, बीते चार सालों में ग्रीनपार्क में हुए अंतरराष्ट्रीय टेस्ट, वनडे और घरेलू टूर्नामेंट में बार-बार केसीए के चेयरमैन को मुख्य भूमिका में देखा गया। जबकि बाकी जिलों को न तो आयोजन का मौका मिला और न कोई ठोस सहायता। क्रिकेट विशेषज्ञों के अनुसार संघ से ये तर्क पेश किया जाता है कि कानपुर में मैच आयोजन वहां के क्रिकेट एसोसिएशन मैनेज कर सकता है ,जबकि देखा जाए तो कानपुर की अपेक्षा लखनऊ क्रिकेट एसोसिएशन को ज्यादा अधिकार मिलने चाहिए क्योंकि वहां पर आईपीएल समेत अन्य गतिविधियां आयोजित की जाती हैं। यूपीसीए के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यूपीसीए अब निजी स्वार्थ का काम करने पर अमादा हो गया है जो नहीं होना चाहिए।एक ही संघ पर मेहरबानी नहीं सभी को बराबर मौके दिए जाने चाहिए जिससे समरूपता बनी रहे। साथ ही उन्होंने कहा कि कानपुर क्रिकेट एसोसिएशन के चेयरमेन संघ में किसी ऐसे पद पर नहीं है जिससे उनको तवज्जो दी जाए। यूपीसीए उनपर इतनी मेहरबानी क्यों लुटा रहा है ये समझ से परे है।
प्रदेश के कई संघ अब खुलेआम यह कहने लगे हैं कि यूपीसीए में “एक ही को तवज्जो, बाकी को अनदेखा” की नीति चल रही है। सवाल यह है कि क्या यूपीसीए नेतृत्व अब भी “समान अवसर” की परंपरा निभा पाएगा या फिर क्रिकेट की राजनीति में यह असंतुलन और गहराएगा? इस संदर्भ में बात करने के लिए यूपीसीए के कोषाध्यक्ष से वार्ता विफल रही क्योंकि वह जवाब ही नहीं देना पसन्द करते हैं।