February 5, 2025

आ स. संवाददाता 
कानपुर। 
 गुजरात के पोरबंदर में शहीद हुए कैप्टन सुधीर कुमार यादव को उनके पिता नवाब सिंह ने गर्व के साथ अंतिम सैल्यूट देकर विदा तो कर दिया, लेकिन उनकी यादों को भुला पाना, उनके लिए बड़ा मुश्किल है ।
बेटे की याद में मां राजमनी पूरी रात जागती रहीं। आंखों से बह रही आंसुओं की धारा थमने का नाम नहीं ले रही थी। दूसरे कमरे में पत्नी आवृत्ति भी चुपचाप बैठी रही। रात भर पति की यादें लिए अपने आंसुओं को पीती रही। 

कानपुर देहात स्थित हरकिशनपुर गांव में हर किसी के मन में सुधीर को लेकर सवाल गूंज रहे थे। देर रात तक गांव में घर के बाहर लोगों की भीड़ जुटी रही।

बेटे के अंतिम संस्कार करने के बाद से नवाब यादव घर के एक कोने में गुमशुम से बैठे रहे। जब कोई उनके पास आता था, तो बस उनकी तरफ देखकर हाथ जोड़ लेते थे। अपने आंसुओं को रोकते हुए घर के लोगों से और रिश्तेदारों से थोड़ी बहुत बातचीत कर लेते थे।
बेटे के अंतिम संस्कार से पहले नवाब सिंह ने कहा था कि सुधीर परिवार की दूसरी पीढ़ी का फौज में अफसर था, लेकिन ईश्वर को शायद कुछ और ही मंजूर था। घाट पर तिरंगा झंडा, बेटे की कैप और बैज लेते समय वह अपने आंसुओं को रोक न सके थे।
घाट से अंतिम संस्कार के बाद जैसे ही परिवार के लोग गांव के घर पहुंचे तो उन्हें देखकर आवृत्ति के आंसुओं का सैलाब एक बार फिर से फूट पड़ा। पूरी रात आवृत्ति आंखों में सुधीर की यादों को लिए उसका नाम पुकारती रही। परिवार के लोग और आवृत्ति के घर वाले उसे बार-बार सहारा देकर ढांढस बंधाते रहे।
घाट पर भाई को अंतिम सैल्यूट के दौरान सुधीर के बड़े भाई धर्मेंद्र कुमार यादव काफी भावुक हो गए। इसके बाद उन्होंने नेवी कोस्टल गार्ड के अधिकारियों के साथ भाई को सैल्यूट भी किया। वह खुद के आंसुओं को लोगों के बीच में छुपाते रहे। कभी पिता को सहारे देते थे तो कभी मां को संभालते थे, तो कभी अपने बच्चों को दुलाराते थे। भाई का साथ छोड़ने का दर्द धर्मेंद्र के चेहरे से साफ झलक रहा था।