July 3, 2025

संवाददाता

कानपुर। आईआईटी कानपुर का 58वां दीक्षांत समारोह सोमवार को बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया गया। इस अवसर पर आरबीआई के गवर्नर व आईआईटी कानपुर के पूर्व छात्र संजय मल्होत्रा मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।  आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मनिंद्र अग्रवाल ने दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता की।
मुख्य अतिथि आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि यह पल सभी पेरेंट्स का है। आज आपके त्याग, आपके प्यार की वजह से ही आपके बच्चे यहां पर मौजूद हैं। मैं भी आपके इमोशंस को इस वक्त महसूस कर सकता हूं, क्योंकि जब मेरे बच्चे आईआईटी गुवाहाटी और आईआईटी मुंबई से ग्रेजुएट हुए थे तो मैं भी इमोशनल हो गया था।
उन्होंने कहा कि मुझे यहां बिताए सभी लम्हे याद है। यह मूमेंट मेरे लिए भी बहुत स्पेशल है, क्योंकि हमारे बैच को फॉर्मल फेयरवेल नहीं मिला था। आज 36 साल बाद मैं यहां आया हूं। आज आईआईटी में बहुत कुछ बदल गया है, लेकिन स्टूडेंट से मिलते हुए लगता है आज भी उनमें वही पैशन और जील है।
आप सभी में से बहुत लोगों को ड्रीम जॉब मिल गई होगी और कई जो करना चाहते हैं वह कर रहे होंगे, लेकिन यह आपके जीवन की पहली सीढ़ी है और आपको यहां से सीखना होगा। टेक्नोलॉजी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है, लेकिन आईआईटी सिर्फ आपको टेक्नोलॉजी नहीं पढ़ा रहा आपको आगे बढ़ने की दिशा भी दे रहा है।
संजय मल्होत्रा ने कहा कि यहां मुझे प्रॉब्लम सॉल्विंग और प्रिंसिपल को समझने के लिए टूल मिले, अच्छे प्रोफेसर्स मिले और मुझे लगता है आपको भी मिल रहे हैं। यह मेरी पहली लर्निंग थी। दूसरी लर्निंग मैंने यूनाइटेड नेशन में हासिल की, जहां मैंने सीखा हमेशा इंप्रूव करने का स्कोप होता है।
आप हमेशा अपने आप को और बेहतर बना सकते हैं और सबसे जरूरी है क्वेश्चन पूछना। अगर आप क्वेश्चन पूछते रहेंगे तो उससे नई आईडिया क्रिएट होंगे, नए सॉल्यूशंस मिलेंगे।
मेरी तीसरी लर्निंग 2008 में मुझे मिली, जहां मैंने सीखा सफलता चाहे कितनी देर से मिले, इसके बारे में नहीं सोचना चाहिए, बल्कि आपके कर्मों के हिसाब से आने वाले समय में भगवान आपको उससे भी बेहतर देते हैं और मेरी चौथी लर्निंग मुझे आईआईटी के कैंपस से ही मिली, जहां मेस का खाना उतना टेस्टी नहीं होता था। इसलिए हम कैंटीन जाया करते थे।
कैंटीन में एक समोसा समोसा 35 पैसे का और कोल्ड ड्रिंक 2 रुपए की मिलती थी। उस समय कैंटीन चलाने वाले लाल जो रात में सबको मन चाहे ऑर्डर डिलीवर किया करते।
कई वेंडर तो ऐसे थे जब हमारे पास पैसे नहीं होते थे तो वह उधार पर दे देते थे, चाहे वह किताबें हो, चाहे खाने का समान हो हमें आईआईटी में उपलब्ध हो जाता था। यह देखकर मुझे बहुत हैरानी हुई जब आईआईटी के बाहर कैंपस में जाते थे तो वहां भी हमें लोग उधार पर या कई बार फ्री में चीज हमें दे देते थे।
यह सब क्यों होता था क्योंकि सबको आईआईटी के स्टूडेंट्स पर भरोसा था, तो मैं आपसे यही चाहता हूं कि आप जिस भी आर्गेनाइजेशन में जाएं वहां सबका भरोसा जीतिए। भरोसा जीतने में बहुत समय लग जाता है लेकिन बहुत जल्दी खो जाता है।
भरोसा बनाना बहुत जरूरी है अगर आप किसी दूसरे आर्गेनाइजेशन में जाएं तो आईआईटी को अपने पेरेंट्स को और अपने आप को प्राउड फील करवाए। आगे बढ़ाने के लिए यह बेहद जरूरी है।