November 21, 2024

कानपुर। भैरव घाट पर स्थित अस्थि कलश बैंक में आज भी तमाम अस्थियां अपनों का इंतजार कर रही हैं। वह पूछ रहीं हैं  कि मेरा विसर्जन कब होगा।कब मुझे मुक्ति और मोक्ष मिलेगा।इस वक्त पितृ पक्ष चल रहा है । लोग अपने पूर्वजों  के लिए धार्मिक अनुष्ठान करवा रहे है । फिर ऐसी क्या वजह रही कि इसी समाज के कुछ लोग आज तक अपनों की अस्थियां लेने नहीं आए।भैरव  घाट  शहर का मुख्य श्मशान घाट है। यह पार्वती बांग्ला रोड के आगे रेव थ्री मॉल के पीछे गंगा के किनारे है। यहां इलेक्ट्रिक शवदाह गृह भी है। हालांकि ज्यादातर लोग समान्यतः लकड़ी जलाकर सामान्य  तरीके से ही अंतिम संस्कार करते हैं। रोज घाट पर औसतन 5-6 लोगों का अंतिम संस्कार इलेक्ट्रॉनिक मशीन के जरिए और 30 से 50 लोगों का अंतिम संस्कार लकड़ी पर जलाकर किया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक शवदाह गृह के पास ही  अस्थि कलश बैंक है। इसे युग दधिचि देहदान संस्थान ने नवंबर-2014 में शुरू किया था। यहां काम कर रहे  छेदी पिछले 23 साल से भैरव घाट पर लाशों को जलाने का काम करते हैं। जब से इलेक्ट्रॉनिक शवदाह बन गया, तब से वह इसी में अंतिम संस्कार करवाते हैं। अस्थि कलशो की देखरेख भी खुद ही करते हैं। बहुत सारे ऐसे लोग होते हैं जो अस्थियां तुरंत नहीं ले जाना चाहते। इसलिए वह यहीं रख देते हैं। क्योंकि अस्थियां घर नहीं ले जाई जा सकती। कई ऐसे भी लोग होते हैं जो तुरंत अस्थियां लेकर उसे गंगा में प्रवाहित कर देते हैं। जो यहां रखना चाहते हैं, उनकी अस्थियां रखकर उन्हें टोकन दे दिया जाता है। फिर 6 महीने या एक साल में वह आते हैं और अस्थियां ले जाकर विसर्जन करते हैं।ऐसे बहुत सारे लोग होते हैं जो अस्थियां लेने नहीं आते। जब ज्यादा वक्त बीत जाता है तब उन अस्थियों को अस्थि कलश बैंक की शुरुआत करने वाले मनोज सेंगर  विसर्जित करते हैं। यह पूरे धार्मिक विधि-विधान से किया जाता है।2020-21 में इस घाट पर अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं थी। उस वक्त लोगों से ज्यादा लाशें नजर आती थीं। एक-एक दिन में 150 लाशों का अंतिम संस्कार होता था। यहां का रिकॉर्ड एक दिन में 191 अंतिम संस्कार का है। उस वक्त हॉस्पिटल्स से कई ऐसी लाशें आती थीं, जिनके पारिवारिक  लोग देश से बाहर या फिर देश के किसी दूर के  हिस्से में रहते थे।इस वजह से अंतिम संस्कार करने  वह नहीं आ पाए। उनका अंतिम संस्कार किया गया और अस्थियां बैंक में  रख दी गई। करीब 2 साल के इंतजार के बाद भी जब कोई नहीं आया तो उन्हें विसर्जित कर दिया गया।अस्थि कलश बैंक की शुरुआत करने वाले मनोज सेंगर   बताते हैं कि अस्थियों को रखने के 2014 में इसकी शुरुआत की। लोग वहां अपनों की अस्थियां रख जाते हैं, उसमें ताला लगा दिया जाता है। उन लोगों को टोकन दे दिया जाता है। बाद में वह आते हैं और फिर जहां उनका मन होता है वह उसे विसर्जित कर देते हैं।मनोज सेंगर कहते हैं कि कई बार लोग नहीं आते। ऐसे में एक तय समय के बाद हम ही पूरे विधि-विधान से उन अस्थियों को भू-विसर्जित करते हैं। भू-विसर्जित इसलिए ताकि गंगा प्रदूषित न हों। इसके जरिए एक संदेश देने की भी कोशिश होती है। कोरोना के वक्त हजारों लोगों ने इसका लाभ उठाया। अब तक 100 से ज्यादा अस्थियों का हम लोगों ने विसर्जन किया है।देश के तमाम हिस्सों में लावारिश लाशों का अंतिम संस्कार करवाने वाले खूब सारे लोग हैं, लेकिन अस्थियों को सुरक्षित रखने और उन्हें विसर्जित करने की ऐसी पहल कहीं और नहीं मिलेगी। मनोज इसी तरह के अस्थि कलश बैंक कई और जिलों में खोलना चाहते हैं, ताकि सभी की अस्थियां सुरक्षित रहें तथा बिना विसर्जन के न रह जाएं।