
संवाददाता
कानपुर। देशभर में महीनों की सक्रियता और अनेक उतार-चढ़ावों के बाद दक्षिण-पश्चिम मानसून अब अपने गंतव्य की ओर बढ़ चला है। धीरे-धीरे ठंडी हवाओं की दस्तक और तापमान में गिरावट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मानसून ने अब विदाई ले ली है और देश के अधिकांश हिस्सों में शरद ऋतु ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है।
सितंबर के अंतिम सप्ताह से ही मानसून की गति में कमी देखी जा रही थी।
मौसम विभाग ने अक्टूबर के पहले सप्ताह में ही संकेत दे दिए थे कि मानसून अब वापसी की ओर है। राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली जैसे उत्तरी राज्यों से मानसून की विदाई पहले ही हो चुकी थी, और अब मध्य भारत तथा पूर्वी भारत से भी इसकी पूर्ण विदाई की पुष्टि की जा चुकी है।
इस वर्ष मानसून की शुरुआत सामान्य रही, परंतु अगस्त के महीने में अपेक्षाकृत कम वर्षा ने कृषि क्षेत्र के लिए चिंता बढ़ा दी थी। हालांकि सितंबर में हुई अच्छी बारिश ने कुछ हद तक राहत दी। मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, देश में इस वर्ष कुल वर्षा औसत से लगभग 6% कम रही, जिससे धान, कपास और दलहनों की बुआई प्रभावित हुई है।
खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में वर्षा की कमी से किसानों को फसलों की पैदावार को लेकर चिंता सताने लगी है। वहीं, महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में समय पर बारिश ने बुआई को सहारा दिया।
जैसे ही मानसून ने कदम पीछे खींचे, पहाड़ी क्षेत्रों से ठंडी हवाएं मैदानी इलाकों में पहुंचने लगीं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के ऊंचे इलाकों में हल्की बर्फबारी और तापमान में गिरावट की खबरें आ रही हैं। मैदानी क्षेत्रों में सुबह-शाम की ठंड ने लोगों को हल्के ऊनी वस्त्र निकालने पर मजबूर कर दिया है।
दिल्ली, लखनऊ, जयपुर और भोपाल जैसे शहरों में न्यूनतम तापमान 18-22 डिग्री सेल्सियस के आसपास दर्ज किया जा रहा है।
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले दो हफ्तों में तापमान में और गिरावट देखने को मिलेगी और अक्टूबर के अंत तक सर्दी की शुरुआत स्पष्ट रूप से महसूस की जा सकेगी।
मानसून की वापसी का असर न केवल मौसम पर, बल्कि अर्थव्यवस्था, कृषि, और जनजीवन पर भी पड़ता है। एक ओर जहां सड़कों, गलियों और घरों में पानी भरने जैसी समस्याओं से राहत मिलती है, वहीं दूसरी ओर किसानों के लिए यह समय खेतों की जुताई और रबी फसलों की तैयारी का होता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अब ध्यान रबी फसलों जैसे गेहूं, चना, और मसूर पर केंद्रित होना चाहिए। इन फसलों के लिए समय पर बुआई और नमी की उचित मात्रा आवश्यक है, जिसकी भरपाई मानसून की आखिरी बारिशों से कुछ हद तक हो सकती है। सी एस ए के मौसम वैज्ञानिक एस एम पांडेय के अनुसार, इस बार सर्दियों की शुरुआत सामान्य समय से थोड़ी पहले हो सकती है। नवंबर के पहले सप्ताह से ही उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड शुरू होने की संभावना है। साथ ही, शीतलहर की तीव्रता भी अधिक रहने की चेतावनी दी गई है।






