August 10, 2025

संवाददाता
कानपुर। 
शहर के नरवल कस्बे में स्थित गणेश सेवा आश्रम खादी भंडार एक ऐतिहासिक धरोहर है। खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग द्वारा प्रमाणित यह स्थान कानपुर जनपद के इतिहास की गवाही देता है।
यह आश्रम राष्ट्रीय गीत रचयिता पार्षद श्यामलाल गुप्त की कर्मभूमि भी रहा है। इतिहास बताता है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, कस्तूरबा गांधी और गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे महान व्यक्तित्व इसी सेवा आश्रम में एक साथ रहे थे।
इसी आश्रम में कस्तूरबा गांधी ने अपने हाथों से भोजन बनाया था। गांधीजी समेत अन्य महान व्यक्तियों ने यहीं सादगी से बैठकर भोजन किया था। आज यह स्थान गांधी घर के नाम से जाना जाता है, जो अब एक उद्योग भंडार के रूप में कार्यरत है। स्थानीय लोग अब भी इस खादी भंडार से वस्त्र खरीदने आते हैं।
गांधी भवन में आज भी वह हथकरघा संरक्षित है, जिसे राष्ट्रपिता अपने हाथों से चलाया करते थे। लेकिन अब वह हथकरघा मौन है। भवन की दीवारें जर्जर हो चुकी हैं। छतें टपकने लगी हैं। इतिहास की यह धरोहर धीरे-धीरे खंडहर में बदलती जा रही है।
सूत के वस्त्र सिलने वाली वह ऐतिहासिक जगह, जहां कभी आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाया गया था, अब शासन-प्रशासन की अनदेखी में जर्जर हो चुकी है। खादी भंडार के मैनेजर और कर्मचारी बताते हैं कि भवन की छत इतनी जर्जर हो गई है कि इसके नीचे बैठने में डर लगता है। नौकरी की मजबूरी में उन्हें यहां काम करना पड़ता है। लेकिन छत गिरने का भय हमेशा बना रहता है।
इतिहास को संरक्षित करने की बजाय शासन की उदासीनता ने इस धरोहर को अकेला छोड़ दिया है। न कोई संरक्षण योजना है, न ही मरम्मत की कोई पहल की गई है। गांधी भवन की दीवारें अब मौन सिसकियां ले रही हैं।
नरवल और आसपास के गांवों के लोग आज भी उस गौरवशाली इतिहास को याद करते हैं। उनके हृदय गर्व से भर जाते हैं जब वे सोचते हैं कि उनके कस्बे में देश के महान व्यक्ति ठहरा करते थे। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह गौरव सिर्फ कहानियों में ही रह जाएगा? क्या शासन द्वारा इस ऐतिहासिक धरोहर को फिर से जीवंत किया जाएगा?