July 30, 2025

आ स. संवाददाता

कानपुर। चैत्र नवरात्रि में बुधवार को मॉं दुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कन्दमाता से भक्तों ने सूर्य जैसे प्रभामण्डल पाने की आस की अरदास लगायी। भक्तों ने अपने घरों में स्थापित की गयी माता का विधि विधान से पूजन कर अपने परिवार की सफलता की भी मनोकामना मांगी।वहीं शहर के सभी छोटे बडे दुर्गा मन्दिरों में माता के दर्शन को श्रृद्धालु उमड़ पडे।  

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:। आदि मन्त्रों  के जाप से घर और मन्दिर के आसपास का वातावरण बहुत ही भक्तिमय  रहा। भक्तों ने माता से अपने सफल जीवन को निर्बाध तरीके से जीने के लिए भी अरदास लगायी। सुबह से पूजा-अर्चना का क्रम शुरू हुआ जो कि देर शाम तक चलता रहा। मंदिरों में जय माता दी के जयकारे गूंजते रहे। शहर के प्रसिद्ध तपेश्वमरी मंदिर में भोर से ही श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी रही। माता के भक्तों ने नारियल, चुनरी व प्रसाद चढ़ाकर माता से धन, वैभव व आरोग्य का आशीर्वाद मांगा। 

नवरात्रि-पूजन के पाँचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है। वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर हो रहा होता है।साधक का मन समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना माँ स्कंदमाता के स्वरूप में पूर्णतः तल्लीन होता है। इस समय साधक को पूर्ण सावधानी के साथ उपासना की ओर अग्रसर होना चाहिए। उसे अपनी समस्त ध्यान-वृत्तियों को एकाग्र रखते हुए साधना के पथ पर आगे बढ़ना चाहिए।

माँ स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वमेव हो जाती है। यह विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है, अतः साधक को स्कंदमाता की उपासना की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है। एक अलौकिक प्रभामंडल अदृश्य भाव से सदैव उसके चतुर्दिक्‌ परिव्याप्त रहता है। यह प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता रहता है।हमें एकाग्रभाव से मन को पवित्र रखकर माँ की शरण में आने का प्रयत्न करना चाहिए। इस घोर भवसागर के दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ बनाने का इससे उत्तम उपाय दूसरा नहीं है। 

शहर के प्रसिद्ध तपेश्वरी देवी मन्दिर के साथ ही बुद्धा देवी और काली मठिया और दक्षिणी हिस्से के बारा देवी,जंगली देवी आदि मंदिरों में माता के जयकारे गूंजते रहे। ग्रामीण इलाकों की अन्य मंदिरों में पूजा करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही। देवी भक्तों ने घरों में व्रत रहकर पूजा की तथा घर में सुख-समृद्धि की कामना की।