आज़ाद समाचार सं०
कानपुर। नगर में स्थित शर्करा संस्थान विभिन्न खाद्य पदार्थो का निर्माण करने के साथ हीं खाद्य पदार्थो के निर्माण का विधिवत प्रशिक्षण देता है। जिसमे बियर का निर्माण प्रमुख है।आपने मार्केट में बीयर के 2 या 3 फ्लेवर ही सुने होंगे। अगर आप विदेशों में जाते है तो वहां पर जरूर कई तरह की फ्लेवर की बीयर मिलती है, लेकिन अब भारत में भी लोगों को कई फ्लेवर की बीयर मिल सकेंगी। नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट, कानपुर में पीजी डिप्लोमा इन इंडस्ट्रियल फर्मंटेशन एंड अल्कोहल टेक्नोलॉजी कोर्स के छात्र-छात्राएं संस्थान में कई तरह के फ्लेवर की बीयर तैयार कर रहे हैं। यहां पर लैब में सीखने वाले छात्र-छात्राओं के लिए इस इंडस्ट्रीज में कई रास्ते खुल जाते हैं। संस्थान में मौजूद लैब में ऑटोमेटिक मशीनें लगी हुई हैं। यहां पर जौं का आटा तैयार किया जाता है। इस आटे को गर्म पानी में डालकर इसका मिश्रण तैयार किया जाता है, ताकि जो भी अंजाइम होते है वह बाहर आ जाए। इसके बाद वार्ट कैटल में खमीर और फ्लेवर को डाला जाता है। फिर वर्लकूल कैटल में ये मिश्रण जाता है, जहां पर छिलके और पानी अलग-अलग किए जाते हैं। इसके बाद फर्मंटेशन टैंक में यीस्ट की प्रापर्टीज जौं की शुगर को अल्कोहल में चेंज कर देता है। इस दौरान फर्मंटेशन टैंक से सीओटू निकलती है। इसके बाद फिल्टर के बाद स्टोरेज टैंक में ग्लाइकोल कूलिंग में रखा जाता है। फिर वहां से बीयर पीने लायक हो जाती है।यंग प्रोफेशनल अल्कोहल टेक्नोलॉजी के शिवम पांडेय ने बताया कि संस्थान में कॉफी, चॉकलेट और गुड़ से बीयर के टेस्ट को बनाया जा रहा है। खास बात तो ये हैं कि इसमें किसी भी प्रकार का केमिकल नहीं मिलाया जाता है। सभी फ्लेवर में जैविक उत्पादों का प्रयोग किया जा रहा है। इस बीयर को पीने से शरीर को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचता है। बीयर को बनाने के लिए जौं, खमीर, हाप्स और आरओ वाटर का प्रयोग किया जाता है। हाप्स एक ऐसा फल है जो कि बीयर के टेस्ट को बनाता है। ये फल ठंडी जगहों पर मिलता है। अधिकांश ये फल अमेरिका और यूरोप में अधिक पाया जाता है। शिवम पांडेय ने बताया कि हालांकि अब इस फल का प्रोडक्शन हिमांचल प्रदेश में भी किया जाने लगा है।
कानपुर। नगर में स्थित शर्करा संस्थान विभिन्न खाद्य पदार्थो का निर्माण करने के साथ हीं खाद्य पदार्थो के निर्माण का विधिवत प्रशिक्षण देता है। जिसमे बियर का निर्माण प्रमुख है।आपने मार्केट में बीयर के 2 या 3 फ्लेवर ही सुने होंगे। अगर आप विदेशों में जाते है तो वहां पर जरूर कई तरह की फ्लेवर की बीयर मिलती है, लेकिन अब भारत में भी लोगों को कई फ्लेवर की बीयर मिल सकेंगी। नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट, कानपुर में पीजी डिप्लोमा इन इंडस्ट्रियल फर्मंटेशन एंड अल्कोहल टेक्नोलॉजी कोर्स के छात्र-छात्राएं संस्थान में कई तरह के फ्लेवर की बीयर तैयार कर रहे हैं। यहां पर लैब में सीखने वाले छात्र-छात्राओं के लिए इस इंडस्ट्रीज में कई रास्ते खुल जाते हैं। संस्थान में मौजूद लैब में ऑटोमेटिक मशीनें लगी हुई हैं। यहां पर जौं का आटा तैयार किया जाता है। इस आटे को गर्म पानी में डालकर इसका मिश्रण तैयार किया जाता है, ताकि जो भी अंजाइम होते है वह बाहर आ जाए। इसके बाद वार्ट कैटल में खमीर और फ्लेवर को डाला जाता है। फिर वर्लकूल कैटल में ये मिश्रण जाता है, जहां पर छिलके और पानी अलग-अलग किए जाते हैं। इसके बाद फर्मंटेशन टैंक में यीस्ट की प्रापर्टीज जौं की शुगर को अल्कोहल में चेंज कर देता है। इस दौरान फर्मंटेशन टैंक से सीओटू निकलती है। इसके बाद फिल्टर के बाद स्टोरेज टैंक में ग्लाइकोल कूलिंग में रखा जाता है। फिर वहां से बीयर पीने लायक हो जाती है।यंग प्रोफेशनल अल्कोहल टेक्नोलॉजी के शिवम पांडेय ने बताया कि संस्थान में कॉफी, चॉकलेट और गुड़ से बीयर के टेस्ट को बनाया जा रहा है। खास बात तो ये हैं कि इसमें किसी भी प्रकार का केमिकल नहीं मिलाया जाता है। सभी फ्लेवर में जैविक उत्पादों का प्रयोग किया जा रहा है। इस बीयर को पीने से शरीर को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचता है। बीयर को बनाने के लिए जौं, खमीर, हाप्स और आरओ वाटर का प्रयोग किया जाता है। हाप्स एक ऐसा फल है जो कि बीयर के टेस्ट को बनाता है। ये फल ठंडी जगहों पर मिलता है। अधिकांश ये फल अमेरिका और यूरोप में अधिक पाया जाता है। शिवम पांडेय ने बताया कि हालांकि अब इस फल का प्रोडक्शन हिमांचल प्रदेश में भी किया जाने लगा है।