आ स. संवाददाता
कानपुर। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान का रणजीत सिंह रोज़ी शिक्षा केंद्र कानपुर नगर और कानपुर देहात के कुम्हारों के लिए टेराकोटा पॉटरी की कार्यशाला का आयोजन कर रहा है। 6 जनवरी से प्रारम्भ हुई यह कार्यशाला 11 जनवरी तक चलेगी। इस कार्यशाला में कानपुर नगर के बिठूर, बैकुंठपुर, मंधना और पचौर के साथ-साथ ही कानपुर देहात के सरवनखेड़ा और पुखरायां से 25 प्रतिभागी कुम्हार भाग ले रहे हैं।
इस कार्यशाला का संचालन कोलकाता के श्रीनिकेतन विश्व भारती विश्वविद्यालय से टेराकोटा पॉटरी और मूर्तिकला के विशेषज्ञ प्रो. मनोज प्रजापति कर रहे है। कानपुर के मूल निवासी प्रो. प्रजापति प्रतिभागियों को स्लैबिंग और कॉइलिंग जैसी उन्नत तकनीकों के साथ-साथ मिट्टी के बर्तनों को पकाने के लिए कम लागत वाली कुशल भट्टियों के निर्माण के व्यावहारिक तरीकों के बारे में मार्गदर्शन देंगे। सत्र में आधुनिक ग्लेज़िंग प्रक्रियाओं को भी शामिल किया गया है, जिसका उद्देश्य उत्पादों की गुणवत्ता और बाजार में उनकी मांग को बढ़ाना है, ताकि कुम्हारों को अपने शिल्प को विकसित करके उपभोक्ताओ की बदलती प्रथिकताओं को पूरा करने में सक्षम बनाया जा सके।
रणजीत सिंह रोज़ी शिक्षा केंद्र कानपुर के 100 से अधिक कुम्हारों से जुड़ा है, जिसका लक्ष्य शहर को मिट्टी के बर्तनों के क्षेत्र में अग्रणी बनाना है। इस कार्यशाला का उद्देश्य नई डिजाइन सोच और बेहतर प्रक्रियाओं को पेश करना है, जिससे कुम्हारों को ऐसे उत्पाद बनाने में मदद मिलेगी जो उपभोक्ताओं के लिए अधिक आकर्षक हों।
आईआईटी कानपुर के प्रो. कल्लोल मोंडल ने इस शिल्प को बढ़ाने के लिए कार्यशाला में प्राप्त ज्ञान को असल जीवन में इस्तेमाल करने के महत्व पर प्रकाश डाला। सिरेमिक विशेषज्ञ प्रो. शैली ने कार्यशाला के पाठ्यक्रम के बारे में जानकारी दी।
कार्यशाला के दौरान प्रो. प्रजापति प्रतिभागियों को विभिन्न मिट्टी के बर्तन बनाने की तकनीकों और सामग्रियों की खोज करने में मार्गदर्शन करेंगे, जिसमें उनके व्यक्तिगत कौशल स्तरों के अनुरूप चाक पर वस्तुएँ बनाने के लिए व्यावहारिक सत्र भी शामिल हैं।
विशेषज्ञ प्रो. प्रजापति के प्रोत्साहन ने कारीगरों को प्रेरित किया और उन्हें आश्वस्त किया कि नई तकनीकें न केवल अपनाने में आसान हैं, बल्कि उनके शिल्प की गुणवत्ता और बाजार में उत्पाद की मांग को बढ़ाने में भी फायदेमंद हैं।
रंजीत सिंह रोज़ी शिक्षा केंद्र की इस पहल का उद्देश्य पारंपरिक कला और आधुनिक बाज़ार की माँगों के बीच की खाई को पाटना है। कौशल विकास और नवाचार को बढ़ावा देकर, यह समृद्ध मिट्टी के बर्तनों की कला की विरासत के लिए एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करता है, साथ ही कुम्हारों को उभरते बाज़ार में पनपने के लिए सशक्त बनाता है।