छोटे बच्चों ने निभाई गुड़िया पीटने की अनोखी परंपरा।

संवाददाता
कानपुर। सावन माह की पंचमी तिथि पर नाग पंचमी का पर्व पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। इस दिन नाग देवता की पूजा के साथ-साथ एक अनोखी परंपरा भी निभाई गई।
सरसौल, कस्बा समेत कई गांवों, कस्बों की गलियों और चौराहों पर छोटे-छोटे बच्चे कपड़े की गुड़िया लेकर पहुंचे। इन गुड़ियों की प्रतीकात्मक पिटाई की गई।
जानकारों के अनुसार, इस परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा है। एक लड़का भगवान शिव और नाग देवता का परम भक्त था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर नाग देवता उसे दर्शन देते थे और पूजा के दौरान उसके पैरों से लिपट जाते थे।
एक दिन वह अपनी बहन को साथ ले गया। बहन ने जब नाग को भाई के पैरों से लिपटा देखा, तो डरकर उसने डंडे से नाग को मार दिया।
भाई ने बहन को बताया कि उसने अनजाने में एक पूजनीय देवता को कष्ट पहुंचाया है। इसी गलती के प्रतीकात्मक पश्चाताप के रूप में कपड़े की गुड़िया बनाकर उसकी पिटाई की परंपरा शुरू हुई। इससे यह घटना भावनात्मक रूप से याद रहती है और समाज में पश्चाताप की भावना बनी रहती है।
नाग पंचमी का यह अनूठा रूप आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह परंपरा उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में प्रचलित है और पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही है।