सूरज का उत्सव मनें, दिन का बढ़ें प्रका,
पर्व संक्रांति पर रहे, रंग भरा आकाश।
बाँटो तिल गुड़ संग में, बोली लिए मिठास,
नव उमंग संक्रांति की, लाए सुख उल्लास।
उड़ती पतंग से भरा, नभ का हर इक छोर,
काई पो चे शब्द में, वो काटा का शोर।
खिचड़ी, तिल गुड़ से मने, पोंगल का त्यौहार,
मकर संक्रांति पर्व दे, नवल फ़सल अंबार।
रश्मि उत्तरायण लिए, जीवन का नव राग,
पर्व संक्रांति ने भरा, हर दिल में अनुराग।
प्रथम पर्व यह वर्ष का, सूर्य संक्रमण चाल,
मकर राशि में प्रवेश हो, बढ़े दिवस का काल।
खिचड़ी, पोंगल, बीहु हैं, अनुपम उत्सव नाम,
ऋतु बसंत अब आ रही, खिलते पुष्प तमाम।
महा कुम्भ का हो गया, भक्ति भरा आगाज,
संगम में शुभ स्नान हो, चलना प्रयाग राज।
—संजीव कुमार भटनागर