शासन को गुमराह करके आउटसोर्सिंग और सेवानिवृत्त कर्मचारियों के दम पर निर्माण एजेंसी बनवाना।
कानपुर। नगर में लघु उद्योग निगम के मुख्यालय में अनिमियत्ताओं के दम पर राजस्व का चूना शासन को लगाया जा रहा है। जिसमे कार्यरत स्थायी गिनती के दो, तीन, अधिकारी कर्मचारी पिछले दस वर्षों से गुणवत्ताहीन औऱ राजस्व विहीन कार्यो को अंजाम दे रहे है जिसमे सुनील यादव अधिशासी अभियंता/ एरिया प्रबंधक द्वारा बनाई गई कार्मिक विवरण की सूची, जिसमे एक अधिशासी अभियंता, दो सहायक अभियंता, चार अवर अभियंता, एक कनिष्ठ सहायक, एक कंप्यूटर ऑपरेटर और एक सुपरवाइजर जिसमे से अधिशासी अभियंता को छोड़कर सभी आउटसोर्सिंग के है।नियमतः इतनी बड़ी संख्या में आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के साथ किसी निधि या योजना का कार्य नहीं किया जा सकता लेकिन इस सूची में यह नही दर्शाया गया है की यह सभी कर्मचारी आउटसोर्सिंग के है। इस सूची में अधिकतर सुनील यादव के रिश्तेदार है, जो निजी आईटीआई से डिप्लोमा होल्डर है जिसके दम पर सरकारी विभागों से संबद्ध निधियों, योजनाओं के मार्केटिंग और निर्माण के करोड़ों के कार्य शासन से लाकर किए जा रहे है। इस तरह की गुणवत्ताहीन टीम का गठन कर करोड़ो के सरकारी कार्यों का निष्पादन करने के कारण वह कार्य भी गुणवत्तापूर्ण नही हो पाते है। क्योंकि इस टीम में शासन द्वारा नियुक्त कर्मचारी नही है, मात्र सभी आउटसोर्सिंग के कर्मचारी होने की वजह से घोटाले भी होते है। इसी क्रम में विभागीय सूत्रों द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार सुनील यादव द्वारा वर्ष 2018 में एरिया प्रबंधक मुरादाबाद रहते हुए लगभग 70 लाख रुपयों का फर्जी भुगतान दिखाकर घोटाला कर दिया गया था। जिसकी शिकायत एक सेवा निवृत्त कर्मचारी द्वारा सूचना आयोग में की गई उसके उपरांत आयोग के आदेशानुसार विभागीय जांच कमेटी गठित की गई जिसकी जांच में अधिशासी अभियंता सुनील यादव को दोषी पाते हुए मौखिक रूप से गबन के रुपए जमा करने के लिए आदेशित किया गया। विभागीय सूत्रों का यह भी कहना है घोटाले की रकम में से रकम का कुछ हिस्सा वापसी के तौर पर जमा करवाया गया है। जबकि संवैधानिक नियम यह है की यदि घोटाला सिद्ध होता है तो भ्रष्ट कर्मचारी पर कानूनन मुकदमा दर्ज कर नियमानुसार उसे बर्खास्त किया जाता है और घोटाले की रकम वसूलने के लिए वसूली प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता है। लेकिन इस लाखों के घोटाले को शासन के उच्चाधिकारियों के संज्ञान में आने से बचाया गया है और मामले को कार्यालय स्तर पर ही निपटाने की कोशिश की जा रही है।
इसी क्रम में विभाग के एक अधिकारी जो कई प्रभार लेकर कार्यरत है जिनमे सबसे उच्च पद अधीक्षण अभियंता के साथ एरिया प्रबंधक लखनऊ/ कार्मिक इंचार्ज/ प्रभारी कोयला/ नजारत प्रभारी/ प्रभारी सचिव के साथ साथ अन्य योजनाओं के प्रभार भी लिए हुए है। इस अधिकारी द्वारा सुनील यादव की तरह ही अनियमितता कर आउटसोर्सिंग और रिटायर कर्मचारियों की टीम का गठन कर शासन को भ्रमित करने की कोशिश करके एक सूची तैयार कर निर्माण एजेंसी बनाए जाने के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। जबकि विभाग में अवर अभियंता और कनिष्ठ अभियंता के पद पर एक भी कर्मचारी स्थाई रूप से तैनात नही है। विश्वस्त विभागीय सूत्रों के अनुसार मौजूदा समय में निगम द्वारा जो कार्य किए जा रहे है उनमें से कुछ कार्यों में शासन को भी अंधेरे में रख कर करोड़ो का चूना लगाया जा रहा है। जैसे निर्माण अनुभाग के कार्यों को विपणन (मार्केटिंग) का कार्य दिखा कर किया जाता है क्योंकि निर्माण में निगम का सेवा शुल्क पांच प्रतिशत है और विपणन (मार्केटिंग) का साढ़े तीन प्रतिशत जो निगम में राजस्व के रूप में जमा किया जाता है। इस प्रकार निगम के राजस्व में डेढ़ प्रतिशत का घोटाला किया जा रहा है। तथा अन्य अनियमितताएं भी हो रही है जैसे एमएसएमई एक्ट में जेम पोर्टल के माध्यम से ही भर्ती और विपणन के कार्य किये जायेंगे लेकिन निगम में इसके माध्यम से कार्य न करके निजी स्तर पर किये जा रहे है।साथ ही पूर्व प्रबंध निदेशक हीरा लाल और राम यज्ञ मिश्रा ने डंप हज़ारों टन कोयले के विषय मे लिखित जांच के आदेश जारी किए थे कि कागजी लिखा पड़ी में कोयला है लेकिन भौतिकता में नही है जिसकी जांच कमेटी गठित करी गई थी लेकिन वो भी ठंडे बस्ते में है संबंधित निगम में अनियमित्ताओं और घोटालों का अंबार है जो की जांच का विषय है।