
संवाददाता
कानपुर। आईआईटी कानपुर के डिजाइन डेवलपमेंट सेंटर में 9 से 15 जून 2025 तक छह दिवसीय मिट्टी के बर्तन बनाने की कार्यशाला आयोजित की जा रही है।
इस कार्यशाला का नेतृत्व प्रो. मंगेश अफरे कर रहे हैं, जो भारतीय क्राफ्ट्स एंड डिज़ाइन संस्थान जयपुर के प्रसिद्ध सिरेमिक विशेषज्ञ हैं। इस कार्यशाला का मकसद एक कारीगर, एक उत्पाद की सोच के तहत कारीगरों को एक खास उत्पाद में महारत हासिल करने में मदद करना है, जिसमें हुनर, नवाचार और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति हो।
इस कार्यशाला में उपयोग की गई मिट्टी सीधे गंगा नदी से ली गई है, जो क्षेत्रीय संस्कृति से जुड़ाव दिखाती है। यहां बर्तन बनाने की प्रक्रिया पारंपरिक तरीकों से कम तापमान पर की जाती है, जो पुराने और नए डिज़ाइन का सुंदर मिश्रण है।
प्रो. मंगेश अफरे कहते हैं कि हम कानपुर के दूरदराज़ गांवों के कारीगरों के साथ मिलकर नई तकनीक और आधुनिक डिज़ाइन लेकर आए हैं। आमतौर पर ये कारीगर शहर के बाजार की जरूरतों को नहीं समझ पाते। हम डिजाइनर उनकी मदद करते हैं ताकि वे शहर की मांग के अनुसार नए डिज़ाइन बना सकें।
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके बनाए हुए बर्तन देखे और सराहना की, तो कारीगरों का हौसला बहुत बढ़ा। इससे वे और बेहतर करने के लिए प्रेरित हुए।
शैली संगल ने प्रो. अफरे के मार्गदर्शन में इस कार्यशाला की योजना बनाई। इसका मुख्य उद्देश्य है कि हर कारीगर अपनी खास ताकत को खोजे और उसे बेहतर बनाए। हर प्रतिभागी ने एक ही बर्तन चुनकर उसे ध्यान और मेहनत से तैयार किया।
कारीगर राम चंद्र प्रजापति ने कहा कि आईआईटी कानपुर ने हमें एक नया अवसर दिया है और हमें एक नई दिशा मिली है। नए डिज़ाइनों पर काम करना अच्छा लग रहा है। हमारी विलुप्त होती कला को पुनर्जीवित करना सबसे अच्छा हिस्सा है, जिससे आने वाली पीढ़ियां भी लाभान्वित होंगी। हम पूरी मेहनत से इस कला को आगे बढ़ाएंगे।
इन छह दिनों के दौरान कारीगर मिट्टी को आकार देने, डिज़ाइन पर चर्चा करने और नमूने बनाने की कारीगरी सीख रहे हैं। हर कारीगर पांच बेहतरीन बर्तन बना रहा है, जिससे उनकी कारीगरी में सुधार हो। वे फॉर्म बनाने, सतह को बेहतर करने और नाज़ुक डिज़ाइन जोड़ने जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर काम कर रहे हैं।
तकनीकी ज्ञान के अलावा, यह कार्यशाला कारीगरों में रचनात्मकता, नवाचार और डिज़ाइन-आधारित विकास की समझ भी बढ़ा रही है। आरएसके नाम का आईआईटी कानपुर का डिज़ाइन डेवलपमेंट सेंटर इसे स्थानीय कारीगरों के लिए स्थायी विकास और कला सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानता है।
यह मिट्टी के बर्तन बनाने की कार्यशाला भारत की हस्तशिल्प विरासत को बचाने के साथ-साथ ग्रामीण कारीगरों के लिए डिज़ाइन और उद्यमशीलता के नए रास्ते खोलने की दिशा में एक बड़ा कदम है।