
संवाददाता
कानपुर। आईआईटी कानपुर के कोटक स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी की ओर से लाइफ ऑफ वेस्ट, इनोवेशन के साथ भारत में ठोस कचरे के प्रबंधन को लेकर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस प्रोग्राम में नागरिक समाज संगठनों से जुड़े लोगों के साथ-साथ शिक्षाविदों और पॉलिसी मेकर्स ने हिस्सा लिया।
इस कार्यक्रम में तीन विषयगत पैनल थे, जिसमें सस्टेनेबल वेस्ट मैनेजमेंट मॉडल्स और पॉलिसी फ्रेमवर्क पर चर्चा की गई।
पैनल 1 में देशभर में कचरा प्रबंधन से जुड़े मौजूदा मॉडलों और फील्ड एक्पीरियंस पर फोकस रहा। पैनल में चर्चा करते हुए शिव नादर यूनिवर्सिटी से आईं कावेरी गिल ने निचले हिमालयी क्षेत्रों में अपशिष्ट प्रबंधन पर लगभग 30 वर्षों के अपने अध्ययन के अनुभव साझा किए। उन्होंने एक पारिस्थितिक रूप से संतुलित, श्रम-संवेदनशील और कम पैसे खर्च करके कचरा प्रबंधन की आवश्यकता पर जोर दिया।
इस दौरान गंधार जोशी ने पुणे के ‘स्वच्छ’ मॉडल को पेश किया। बता दें कि ‘स्वच्छ’ एक कचरा इकट्ठा करने वालों का सहकारी संगठन है, जो तय उपभोक्ता शुल्क के आधार पर घर-घर जाकर कचरे को इकट्ठा करता है। जोशी ने 2005 के आई बाद पॉलिसी में आए उस बदलाव की ओर इशारा किया, जिसने इंटीग्रेटेड कचरे और ऊर्जा समाधानों की दिशा की ओर प्रेरित किया।
साहस ज़ीरो वेस्ट की सीईओ शोभा राघवन ने इन्फ्रास्ट्रक्चर की महत्ता के बारे में बताया। उन्होंने कई शहरों में माइक्रो-कम्पोस्टिंग और बायो सेंटर्स की कमियों को उजागर किया। साथ ही आईआईटी कानपुर को जीरो वेस्ट कैंपस बनाने के कार्यों की सराहना की। टीआईएसएस की तृप्ति सिंह ने लखनऊ से जुड़ी पांच केस स्टडी के के बारे में चर्चा की, जिसमें लोकल सस्टेनेबिलिटी प्रैक्टिस और लोगों द्वारा कचरा प्रबंधन को लेकर की गई पहल शामिल थीं।
वेस्ट वॉरियर्स की दिया बत्रा ने हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के अनुभव साझा किए। उन्होंने बीड़, धर्मशाला और कैंपटी जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़ी चुनौतियों के बारे में बताया।
पैनल 2 में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पॉलिसी का रिव्यू शामिल था। इस पैनल में चर्चा करते हुए अहमदाबाद की सीईपीटी यूनिवर्सिटी की मर्सी सैमुएल ने बताया कि स्वच्छ भारत मिशन कार्यक्रम ने किस तरह से शहरों को अपने अपशिष्ट प्रबंधन ढांचे को पुनर्गठित करने में मदद की है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के त्रिभुवन सिंह बिष्ट ने विभिन्न शहरों में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन की लागत के विश्लेषण को लेकर चर्चा की। इसके साथ ही, काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर से जुड़ीं अर्कजा सिंह ने शहरी अपशिष्ट प्रबंधन में कानूनी और रेग्युलेटरी दिक्कतों के बारे में बात की। उनका एनालिसिस भारत के चार शहरों में अपशिष्ट प्रबंधन पर आधारित था।
पैनल 3 में टेक्नोलॉजी और वेस्ट मैनेजमेंट पर चर्चा की गई। इसमें आईआईटी कानपुर के मनोज तिवारी ने अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों के अनुकूलन में निर्णय विज्ञान की महत्ता को उजागर किया वहीं, आईआईटी बीएचयू के आर.एस. सिंह ने पैनल में बात करते हुए जीवन चक्र मूल्यांकन को सतत विकास लक्ष्यों से जोड़ने पर जोर दिया।
आईआईटी कानपुर के प्रो. राजीव जिंदल और अंकिता भौमिक ने लखनऊ कैंट को केस स्टडी के तौर पर प्रस्तुत करते हुए बताया कि किस तरह तकनीक का इस्तेमाल अपशिष्ट प्रबंधन में मौजूद कमियों को दूर करने के लिए किया जा रहा है। आईआईटी कानपुर से ही कोरी ग्लिकमैन ने इंफोसिस कैंपस में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर अपने कार्य अनुभव को साझा करते हुए बताया कि कचरे को एक बोझ नहीं, बल्कि एक संसाधन के रूप में देखने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम का समापन एक राउंड टेबल सेशन के साथ हुआ, साफ और सस्टेनेबल भविष्य के निर्माण के लिए बहु-हितधारक सहयोग को प्रोत्साहित किया गया।