
आ स. संवाददाता
कानपुर। डिसलेक्सीया एक प्रकार की लर्निंग डिसएबिलिटी है, जो खासकर पढ़ाई से जुड़ी समस्याओं से संबंधित होती है। बच्चों में होने वाली इस न्यूरोलॉजिकल स्थिति को समय पर पहचानकर उन्हें इससे निपटने में मदद करनी चाहिए, जिससे उनका भविष्य उज्जवल बनाया जा सके। इसके लिए सबसे जरूरी है जागरूकता, क्योंकि ज्यादातर लोग ऐसी स्थिति में बच्चों का स्वभाव समझने में असमर्थ होते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, आईआईटी कानपुर की ओर से डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चों के लिए एक पहल की गई है। कानपुर के ग्रामीण क्षेत्र, वाराणसी, गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद और गुरुग्राम में सरकारी विद्यालयों को चिह्नित करके, शिक्षकों को प्रशिक्षण देकर, परामर्शदाताओं के प्रतिस्थापन के तौर पर तैयार किया जाएगा।
इस पहल की शुरुआत कानपुर के एनएलके अकादमी से हुई। जहां, सरकारी स्कूलों में मनोवैज्ञानिक मदद को मजबूत करने, शिक्षकों के बीच डिस्लेक्सिया और डिसग्राफिया से प्रभावित बच्चों की आवश्यकताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने और डिस्लेक्सिया के लिए गैर-क्लिनिकल आकलनों का विस्तार करने की अपनी प्रतिबद्धता के तहत, क्यूट ब्रेन्स प्राइवेट लिमिटेड ने कानपुर के एनएलके अकादमी में एक प्रभावशाली कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में 30 से अधिक शिक्षकों ने भाग लिया।
डाना फाउंडेशन के सीएसआर समर्थन और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के स्टार्टअप इन्क्यूबेशन और इनोवेशन सेंटर की सहायता से, क्यूट ब्रेन्स सरकारी और निजी प्राथमिक स्कूलों को मार्गदर्शन देने के लिए समर्पित है। इसका उद्देश्य माता-पिता और शिक्षकों को संवेदनशील बनाना, गैर-क्लिनिकल आकलनों में सहायता करना और डिस्लेक्सिया और डिसग्राफिया से पीड़ित छात्रों के लिए सहायक एप्लिकेशन का उपयोग करके एप्लिकेशन-आधारित हस्तक्षेप प्रदान करना है।
इस नेक कार्य को लेकर आईआईटी के उप निदेशक एवं ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंसेज के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. ब्रजभूषण ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि दाना फाउंडेशन नाम की कंपनी के सीएसआर फंड की मदद से सरकारी विद्यालयों को लक्ष्य बनाया गया है, क्योंकि इनमें आने वाले बच्चे गरीब हैं और वहां कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। पूर्व में वाराणसी में एक कंपनी की मदद से प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया गया था, जिसमें शिक्षकों को तैयार किया गया था। वहां, 100 बच्चों पर काम करने का लक्ष्य है और 59 बच्चों का मूल्यांकन हो चुका है, जबकि बाकी का परीक्षण किया जा रहा है। इनमें चार बच्चे इस बीमारी से पीड़ित मिले हैं।
डिस्लेक्सिया के लक्षण और पहचान के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि डिस्लेक्सिया एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है, जो पढ़ने, लिखने, वर्तनी और कभी-कभी बोलने में कठिनाई का कारण बनती है। यह एक सामान्य शिक्षण अक्षमता है, जो बुद्धि से संबंधित नहीं है। डिस्लेक्सिया वाले लोग अक्सर शब्दों, अक्षरों या ध्वनियों को संसाधित करने में परेशानी महसूस करते हैं, जिससे पढ़ने की गति धीमी हो सकती है या शब्दों को समझने में दिक्कत हो सकती है।
डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए आईआईटी कानपुर लगातार प्रयासरत है। आने वाले समय में जागरूकता को बड़े स्तर पर ले जाया जाएगा। साथ ही डेटा सर्वे के माध्यम से यह भी समझने की कोशिश की जाएगी कि किस क्षेत्र में बच्चों पर इसका कितना असर हुआ है।