आ स. संवाददाता
कानपुर। मिट्टी की कीमत बढ़ने और मजदूर नहीं मिलने से मिटटी की मूर्तियां पीओपी की मूर्तियों की अपेक्षा अधिक तैयार की जा रही हैं लेकिन वह आज भी पीओपी की मूर्तियों पर भारी पडती दिखायी दे रही हैं। बाजार में हर ओर आसानी से उपलब्ध होने वाले पीओपी से शीघ्र ही मूर्तियों का निर्माण हो कर लिया जाता है जबकि मिटटी से बनी मूर्तियों को तैयार करने और सुखाने में ही समय लग जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार मिट्टी से बनी मूर्ति में भगवान गणेश जी, मां दुर्गा, काली माता, लक्ष्मी माता, सरस्वती माता का वास होता है। मिट्टी के बने हुए गणेश जी से माँ लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं साथ ही मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा की पूजा करने से कई यज्ञों का फल मिलता है। माना जाता है कि मिट्टी में पांच तत्व होते हैं भूमि, अग्नि, जल, वायु और आकाश यह सब एक मिट्टी में होते हैं।मिट्टी की मूर्ति से पूजा करने से सकारात्मक ऊर्जा भी मिलती है। भगवान गणेश लक्ष्मी की प्लास्टर ऑफ पेरिस पीओपी से बनी मूर्ति पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है, जबकि मिट्टी से बनी मूर्ति पर्यावरण को संरक्षण देती है।
इसलिए सभी को ईको फ्रेंडली मिट्टी की मूर्ति लेकर ही विराजमान करनी चाहिए। ताकि पूजा अर्चना के बाद विसर्जन करने पर पर्यावरण सुरक्षित रहे। इसके प्रति सभी लोगों को जागरूक आना चाहिए। यह गंभीर मामला है जिससे पर्यावरण, जानवर तथा मानव को भी प्रदूषण के माध्यम से नुकसान पहुंचाता है। नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्र में किसी भी स्थिति में प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों का क्रय विक्रय नहीं हो। लोग सालभर शादी, विवाह, घर, मकान मुहूर्त सहित अन्य शुभ कार्यों में भगवान गणेश को पूजा करते है, वहा मिट्टी या गोबर से बनी मूर्ति को ही पूजा करनी चाहिए। गणेश- लक्ष्मी की मूर्तियों के व्यापारी राजू सोनकर के अनुसार मिट्टी की मूर्ति की भी काफी डिमांड है, लेकिन वह आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। विभिन्न स्थल पर मूर्ति निर्माण में जुटे कलाकारों के अनुसार इस वर्ष करीब 20 हजार से अधिक पीओपी और 7 से 8 हजार से अधिक मिट्टी निर्मित मूर्तियां तैयार की जा रही हैं। वह बताते हैं कि पीओपी से निर्मित मूर्ति की कीमत 10 से 200 रुपये तक है। वहीं मिट्टी से निर्मित मूर्तियां 200 से 1000 रुपये तक की हैं। शहर के सुतरखाना स्थित तिलियाना में रहने वाले बऊवा साहू बताते हैं कि इसबार देसी गाय के गोबर, मिट्टी, चूना आदि सामग्री की मदद से मूर्तियां तैयार करा रहे हैं। इसका प्रचार-प्रसार होने के बाद देशभर से इसके लिए डिमांड आने लगी है। 125 से 200 रुपये तक की ये मूर्तियां पूरी तरह स्वदेशी हैं। साथ ही इनपर प्राकृतिक रंग भी चढ़ा है। पिछली बार कुछ परिवारों ने इसे खरीदा था तो इसबार करीब 10 हजार मूर्ति निर्माण का लक्ष्य है लेकिन आवश्यक नही कि लक्ष्य पूरा किया जा सके।