—पैसों की ‘बौछार’ से मिलता है पदाधिकारी बनने का ‘उपहार’।

संवाददाता
कानपुर। समाज उत्थान का दम्भ भरने वाले सामाजिक संगठन अब पूरी तरह से चन्दा वसूली करने पर उतारू हो चुके हैं। इसकी बानगी नगर में एक सामाजिक संगठन केन्द्रीय बाल्मीकि मेला कमेटी में आसानी से देखने को मिल रही है। एक समाज के नाम पर गठित केन्द्रीय बाल्मीकि मेला कमेटी में उसी व्यक्ति को सर्वोच्च पद पर बिठाने का काम किया जाता है जो संगठन को सर्वाधिक धनराशि चन्दे के रूप में वसूली कर देता है।
संगठन का नाम भी शायद इसी तर्ज पर गिना जाए तो अतिश्योक्ति नही होनी चाहिए। ऐसा कहना इसलिए भी दुरुस्त रहेगा कि इस संगठन में अब यह सत्ताधारी दल के लोगों से भी लाभ लेने से गुरेज नही करता। यह संगठन अब सामाजिक गतिविधियों से एकदम अलग राजनीतिक कार्यकम्रों में बढ चढकर हिस्सेदारी करने पर अमादा दिखायी देता है। इस संगठन की एक खासियत यह भी है कि इसमें न ही चुनाव करवाए जाते है और न ही किसी तरह की बैठक आयोजित की जाती है।बस संरक्षक मण्डल की मर्जी से संगठन के सारे कार्य सम्पादित किए जा रहे हैं ,संरक्षक मण्डल जिसे चाहता है उसे पदाधिकारी बना दिया जाता है।कई सालों से बाल्मीकि जयंती के नाम पर इस संगठन के पदाधिकारी राजनैतिक दलों के साथ ही सामाजिक लोगों से भी चन्दा वसूली करते आ रहे है। लगभग तीन दशक पहले सामाजिक विकास को लेकर गठित की गई इस संस्था को अब 5 से 7 लोगों ने अपनी गिरफ्त में ले रखा है।उनके इशारे पर समाज के युवा और बेरोजगार चन्दा वसूली करते हैं।
गौरतलब है कि बीते कई सालों से बाल्मीकि समाज के नाम पर राजनैतिक दलों में उनके पक्ष में मतदान कराने के बहाने अपनी ताकत को बढाने का काम कुछ चुनिन्दा ठेकेदारों ने उठा रखा है। समाज के कुछ चुनिन्दा पैसे वाले लोगों का समूह जिन्हे आम तौर पर ब्याज पर पैसे देने वाले साहूकार की उपाधि भी मिली हुयी है। उनका समूह समाज के कुछ चुनिन्दा क्षेत्रों में रहने वाले अपने खास लोगों को इस संगठन में जोडने का काम कर रहे हैं। इस संगठन में कार्य करने वाले सदस्य शायद ही सामाजिक उत्थान की बात ही करते हों वह केवल साल में एक बार होने वाले आयोजन के लिए केवल चन्दा वसूली अवश्य ही करते हैं और विरोध करने वालों से लड़ने को भी उतारू हो जाते हैं।
90 के दशक के उत्तरार्ध में जन्मे इस संगठन में अभी तक अध्यक्ष और महामन्त्री के पद का चुनाव ही नही करवाया गया है। यही नही कोई भी सामान्य सामाजिक कार्यकर्ता भी इस संगठन का सदस्य नियुक्त नही किया जा सका है। इस संगठन के संरक्षक मण्डल के मुखिया का चोला ओढ़े सख्श समाज के उन पैसे वालों पर अपनी नजरें गडाए रखते हैं जिनका सामाजिक स्तर भले ही श्रेष्ठ न हो लेकिन वह आयोजन के लिए अधिक से अधिक पैसों का इन्तजाम कर सके या फिर चन्दे की वसूली करें।
दो साल पूर्व आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत के मुख्य कार्यक्रम में शामिल होने के बाद तो इस संगठन के मानो सुरखाब के पर ही निकल आए । इसके सरंक्षक सदस्यों ने इस पर अपना मालिकाना हक समझ लिया है। वह अन्य किसी भी व्यक्ति को इसमें प्रवेश ही नही देते हैं, यही नही आज तक इस संगठन के आय-व्यय का ब्यौरा भी सार्वजनिक नही किया गया है। समाज के सूत्र बताते हैं कि मेला कमेटी की कब बैठक आयोजित की जाती है ये भी समाज के किसी भी मोहल्ले में बताने का फर्ज नही समझा जाता है। सूत्र यह भी बताते हैं कि इस संगठन को मजबूती प्रदान करने वाले पुराने लोगों को भी अब किसी भी कार्यक्रम के लिए बुलावा नही भेजा जाता है।
इस बारे में बात करने के लिए संगठन के पुराने सदस्यों में से एक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कुछ लोगों ने संगठन को अपना पुश्तैनी घर समझ लिया है जिसे वह छोडना ही नही चाहते। वह किसी को चुनाव के माध्यम से नही केवल नियुक्ति करके अपनी उपयोगिता सिद्ध करने में मशगूल हैं। सदस्य ने यह भी बताया कि ये संगठन अपना मूल उददेश्य भूल गया है उसके वर्तमान सदस्य और पदाधिकारी केवल पैसों के दम पर टिके हुऐ हैं।