December 7, 2025

संवाददाता

कानपुर। रोशनी के त्योहार दीपावली में इस बार कई लोगों की जिंदगी में अंधेरा आ गया है। कानपुर मेडिकल कॉलेज के हैलट अस्पताल में अब तक 105 मरीज आंख में जलने की गंभीर समस्या लेकर पहुंच चुके हैं। इनमें से कई की आंखों की रोशनी आ पाना बहुत मुश्किल हैं, जबकि कुछ मरीजों की दृष्टि को डॉक्टरों ने कठिन सर्जरी के बाद किसी तरह बचाया है।
अभी भी रोजाना पटाखे से जलने वाले मरीज यहां पर पहुंच रहे हैं। वहीं, कुछ मरीज दूसरे अस्पतालों से भी रेफर होकर आ रहे हैं। ऐसे में कई मरीजों की हालत तो काफी ज्यादा खराब है। उनकी आंखों की कार्निया बुरी तरह से प्रभावित हो चुकी हैं। ऐसे लोगों की आंखों की रोशनी लाना डॉक्टरों के लिए भी काफी चुनौतीपूर्ण है।
कानपुर मेडिकल कॉलेज की नेत्र रोग की पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. शालिनी मोहन ने बताया कि इस बार दीपावली पर आंखों के जख्मी मरीजों की संख्या पिछले साल की तुलना में तीन गुना अधिक रही। ये मरीज 20 अक्टूबर की रात से लेकर 27 अक्टूबर के बीच में आए हैं।
उनका कहना है कि इन मामलों में सबसे बड़ा कारण है, कार्बाइड वाले पटाखे, जिनका उपयोग तेजी से बढ़ गया है। ये पटाखे सस्ते और तेज धमाके वाले होते हैं। इसलिए लोग इन्हें ज्यादा पसंद करते हैं। फिर ये ही पटाखे आंखों के लिए घातक साबित होते हैं।
डॉ. शालिनी के अनुसार, करीब 65 प्रतिशत मरीजों की आंखें कार्बाइड पटाखों से जली हैं। इन पटाखों में इस्तेमाल होने वाला कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड जैसे रासायनिक तत्व बेहद जहरीले होते हैं। ये पदार्थ जब फटते हैं तो सीधे आंख की कार्निया पर हमला करते हैं, जिससे कार्निया जलकर सफेद पड़ जाती है और मरीज की दृष्टि चली जाती है।
कार्बाइड बंदूक आमतौर पर प्लास्टिक या टिन के पाइप से बनाए जाते हैं। ये कैल्शियम कार्बाइड और पानी का इस्तेमाल करके केमिकल रिएक्शन पैदा करते हैं, जिससे एक तेज विस्फोट होता है। कार्बाइड गन में कैल्शियम कार्बाइड, माचिस की तीलियों और बारूद का मिश्रण होता है।
कैल्शियम कार्बाइड में पानी मिलाने से एसिटिलीन गैस बनती है, जिसके जलने से शक्तिशाली विस्फोट होता हैं, जिससे तीव्र गर्मी और हानिकारक गैस निकलती हैं।कार्बाइड गन को पीवीसी मंकी रिपेलर गन के नाम से भी जाना जाता है।
इन रसायनों के संपर्क में आने से कार्निया की परत घुल जाती है। कई मामलों में तो आंख का पर्दा फट गया, जिसे सर्जरी के जरिए सील कर किसी तरह रोशनी वापस लाई गई।
हैलट अस्पताल में भर्ती मरीजों में से 11 मरीजों की कार्निया पूरी तरह डैमेज हो चुकी थी। डॉक्टरों ने बताया कि इनमें से 5 मरीजों की आंखों की रोशनी काफी कुछ वापस लाई गई, जबकि बाकी मरीजों का इलाज अभी जारी है।
डॉ. शालिनी मोहन ने बताया कि जिसकी आंखों में जितना गहरा जख्म होगा, उसको ठीक होने में उतना ही ज्यादा समय लगेगा। यदि हल्की चोट होती है तो मान के चले उसको पूर्णतया ठीक होने में 15 से 20 दिन का समय लग जाता है। यदि किसी का कार्निया पूरी तरह से सफेद हो गई है तो उसको ठीक होने में कम से कम दो माह का समय ले लेता हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि पारंपरिक पटाखों की जगह अब बाजार में कार्बाइड और अन्य ज्वलनशील रासायनिक पदार्थों से बने सस्ते पटाखे आ गए हैं। ये सामान्य पटाखों से ज्यादा चमकदार तो होते हैं, लेकिन शरीर के लिए बेहद हानिकारक और खतरनाक हैं।