
संवाददाता
कानपुर। ऐतिहासिक सती चौरा घाट पर आयोजित निषाद समाज के स्मृति एवं संकल्प दिवस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश सरकार के मत्स्य मंत्री एवं निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संजय कुमार निषाद ने कहा कि यह घाट केवल गंगा का किनारा नहीं, बल्कि निषाद समाज के बलिदान, शौर्य और आज़ादी की पहली चिंगारी का साक्षी है।
1857 में निषाद नाविकों ने यहां अंग्रेजों को गंगा में डुबोकर मौत दी और ब्रिटिश सत्ता की नींव हिला दी। इसके प्रतिशोध में मेसकर घाट पर सैकड़ों निषादों को बिना सुनवाई फाँसी पर लटका दिया गया और 1871 में क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट के जरिये निषाद समाज को जन्मजात अपराधी बताकर अपमानित किया गया।
डॉ. संजय कुमार निषाद ने कहा कि आज हम संविधान, कलम और वोट के माध्यम से अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं, ताकि निषाद समाज को अन्य पिछड़ा वर्ग में पृथक आरक्षण, मत्स्य योजनाओं में वरीयता और हर स्तर पर सम्मान दिलाया जा सके। उन्होंने सती चौरा और मेसकर घाट को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने तथा क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट की सच्चाई को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने की माँग करते हुए कहा कि निषाद समाज के बच्चों को अपने पूर्वजों के शौर्य की जानकारी अवश्य दी जाए, ताकि समाज में आत्मगौरव की चेतना जगे और आने वाली पीढ़ियाँ नेतृत्व के लिए तैयार हों।
सभा में डॉ. संजय कुमार निषाद ने केंद्र और राज्य सरकार द्वारा मछुआ समाज के उत्थान के लिए चलाई जा रही प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना, मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजना, मछुआ दुर्घटना बीमा योजना, किसान क्रेडिट कार्ड, सघन मत्स्य पालन एरियेशन सिस्टम, निषाद राज बोट योजना, माता सुकेता केज सिस्टम, मत्स्य पालक कल्याण कोष जैसी अनेक कल्याणकारी योजनाओं का विस्तार से उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि इन योजनाओं का लाभ समाज तक पारदर्शी ढंग से पहुँचाया जा रहा है, तालाबों और जलाशयों का पट्टा वितरण निषाद समाज को प्राथमिकता देकर किया जा रहा है तथा अवैध कब्जों को हटाने और जलस्रोतों की सुरक्षा के लिए सरकार पूरी प्रतिबद्धता से काम कर रही है।
इटावा में कथावाचक विवाद पर डॉ. संजय कुमार निषाद ने कहा कि यह घटना अत्यंत निंदनीय है, जिसकी जितनी निंदा की जाए उतनी कम है। भारतीय संविधान सभी नागरिकों को पूजा-पाठ करने और करवाने का समान अधिकार देता है, किसी भी जाति को इससे वंचित नहीं किया जा सकता। डॉ. संजय कुमार निषाद ने कहा कि वे स्वयं निषाद संस्कृति को मानते हैं और उसे आगे बढ़ाने में सदैव जुटे हैं। उन्होंने अपील की कि इस मामले में अनावश्यक राजनीति न हो और दोषी किसी भी पक्ष का हो, उसे सख्त सजा दी जाए ताकि समाज में सौहार्द बना रहे। उन्होंने कहा कि आजादी से पहले जातियों को पेशों में बाँधा गया था, लेकिन आज सभी को हर कार्य करने का समान संवैधानिक अधिकार प्राप्त है।
संविधान से समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्द हटाने के विषय पर पूछे गए सवाल पर डॉ. संजय कुमार निषाद ने कहा कि संविधान में किसी भी संशोधन के लिए संसद का बहुमत अनिवार्य होता है, लेकिन आपातकाल के दौरान जब लोकतंत्र लगभग निलंबित था, तब कांग्रेस ने ये शब्द किस आधार पर जोड़े, यह गंभीर सवाल है। इस विषय पर संसद में बहस होनी चाहिए और यदि संसद की राय में ये शब्द आवश्यक हैं तो बने रहें, अन्यथा हटाए जाएँ। लोकतंत्र में ऐसा कोई भी संशोधन जनता और संसद की सामूहिक सहमति के बिना नहीं होना चाहिए।