March 10, 2025

आ स. संवाददाता 
कानपुर।
एक होमगार्ड के जवान असलम के बयान से ही पूरे विभाग की दशा पता चलती हे। असलम ने अपना दुख बताया कि मेरी बेटी अदीबा कक्षा पांच में पढ़ती है। किसी तरह उसकी पढ़ाई का खर्च उठा पा रहे हैं साहब, अभी पिछले महीने उसे बुखार हुआ और तबीयत बिगड़ गई। उसका बुखार दिमाग में चढ़ गया। मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं किसी अच्छे अस्पताल में बेटी का इलाज करा पाता। किसी तरह से रिश्तेदारों से चंदा उधारी लेकर उसका इलाज कराया।
वो एक महीने तक बीमार रही और मैं ड्यूटी पर नहीं जा सका। एक महीने बाद जब मैं ड्यूटी पर पहुंचा तो मुझे कोई वेतन नहीं मिला। जबकि मैने विभाग स्तर पर अधिकारी और बाबू सबको जानकारी दे दी थी मगर हम डेली वेजेस पर काम करते हैं और उस एक माह में मेरी गैरहाजिरी ही लगी।
होमगार्ड जिसे सहायक पुलिस भी कह सकते हैं। कानपुर  शहर में होमगार्ड्स की कई समस्याएं हैं। आश्वासन बहुत सारे मिलते है कि उनकी स्थितियों में सुधार लाया जाएगा मगर आज तक आश्वासन के अलावा उन्हें और कुछ नहीं मिला।
होमगार्ड्स की ड्यूटी हर स्थान पर लगाई जाती है। जैसे अधिकारियों के दफ्तर में, ट्रैफिक में, थाने में, डायल 112 में यहां तक की ट्रैफिक सिपाहियों के साथ चौराहा संभालने में भी होमगार्ड्स का सहयोग लिया जाता है। शहर में वर्तमान में लगभग 3000 होमगार्ड्स है। पीआरवी में ड्यूटी करने वाले होमगार्ड्स दो पहिया और चार पहिया वाहनों पर ड्यूटी करते हैं।
रेलबाजार में पीआरवी दो पहिया वाहन पर तैनात होमगार्ड अजय कुमार त्यागी कहते हैं कि हमने चार साल में छह साल की नौकरी कर ली है। उनके मुताबिक शासनादेश है कि पीआरवी के दो पहिया वाहनों में ड्यूटी करने वाले होमगार्ड की तीन शिफ्ट में ड्यूटी लगाई जाएगी। मगर हम लोगों से 12-12 घंटे ड्यूटी कराई जाती है। पिछले चार साल से हम प्रतिदिन 12 घंटे ड्यूटी करते आ रहे हैं। चार घंटा एक्स्ट्रा के हिसाब से चार साल में हमने दो साल की एक्स्ट्रा ड्यूटी कर ली है।

अजय कुमार त्यागी बताते हैं कि ड्यूटी की टाइमिंग को लेकर हमने पुलिस कमिश्नर को दो माह पहले पत्र सौंपा  था। इसमें 95 होमगार्ड्स ने हस्ताक्षर किए थे। हमलोग पुलिस कमिश्नर के सामने पेश भी हुए थे मगर वहां से सिर्फ आश्वासन मिला। किसी प्रकार की राहत आज तक नहीं मिली। अजय त्यागी के मुताबिक इसे लेकर मुख्यमंत्री से लेकर डीजी होमगार्ड, डीजीपी व सभी प्रमुख अधिकारियों को पत्र भेज चुके हैं मगर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

होमगार्ड अनुपम अवस्थी बताते हैं कि होमगार्डों की कोई छुट्टी नहीं होती। उन्हें वेतन प्रतिदिन के हिसाब से मिलता है। जितने दिन वो ड्यूटी करेंगे उतने दिन का वेतन होगा। जिस दिन वो ड्यूटी नहीं करेंगे उस दिन का वेतन काट लिया जाएगा। होली दीपावली, स्वतंत्रता या गणतंत्र दिवस हो या और कोई भी पर्व हो होमगार्ड को छुट्टी का कोई प्रावधान नहीं है। अनुपम बताते हैं कि एक पत्र उच्च अधिकारियों की तरफ से जारी किया गया था जिसमें महीने में तीन छुट्टियों की बात थी मगर वो आज तक लागू नहीं हुई।
अजय त्यागी बताते हैं कि महिला होमगार्ड यदि प्रेग्नेंट भी है तो उसके लिए भी अवकाश का कोई प्रावधान नहीं है। वो जितने दिन छुट्टी करेंगी उतने दिन का उनका वेतन भी कट जाता है। उनकी मेडिकल आदि को लेकर भी कोई फेसिलिटी नहीं दी जाती। ऐसा प्रस्ताव पास हुआ था कि सभी होमगार्डों के आयुष्मान कार्ड बनेंगे और पीएफ भी कटेगा मगर यह भी अब तक नहीं हो सका है।
छुट्टी और ड्यूटी टाइमिंग के अलावा होमगार्डों के लिए सबसे बड़ी समस्या दूरी की भी है। होमगार्ड राघवेन्द्र सिंह बताते हैं कि वो गजनेर बार्डर पर रहते हैं और रेल बाजार थाने में उनकी ड्यूटी लगाई गई है। छह घंटे आने जाने में लगता है। राघवेन्द्र बताते हैं कि दूरी होने के कारण वो 15 दिनों से ड्यूटी नहीं कर पाए हैं। जिसके कारण अब उनका वेतन कटेगा। राघवेन्द्र कहते हैं कि एक माह पहले इस समस्या से निपटने के लिए उच्च अधिकारियों ने होमगार्डों से तीन थानों का ऑप्शन मांगा था। जिसमें वो अपने घर के पास के तीन थाने बता सकते थे। ऑप्शन दिए भी गए मगर उसपर भी कुछ नहीं हुआ। दस थाने क्रॉस कर हमारी ड्यूटी यहां लगा दी गई। इसी तरह बाकी होमगार्ड्स को भी समस्या होती है।
होमगार्ड बताते हैं कि शासन से हर थाने में होमगार्डों के लिए बैरक बनाए जाने का भी प्रस्ताव पास हुआ था। जिससे वो थाने में ही ड्यूटी के बाद थोड़ा आराम कर ले मगर यह भी नहीं हुआ। इसके अलावा होमगार्डों को पुलिस कर्मियों की तरह कभी कोई कॉलोनी तो दी ही नहीं गई। वो अपने घर से या फिर किराए के घर में रहकर ड्यूटी पर आते जाते हैं।
होमगार्ड्स के मुताबिक जीवन बीमा को लेकर भी होमगार्डों के पास कुछ नहीं है। सिस्टम यह है कि यदि उसकी ड्यूटी पर रहते हुए एक्सीडेंटल मौत होती है तो परिवार को 35 लाख रुपए मिलेंगे मगर यदि वो ड्यूटी खत्म करके घर पहुंच गया है और वहां कुछ हो जाता है तो बीमा का भी कोई लाभ उसे नहीं मिलेगा। जबकि पुलिस में ऐसा सिस्टम नहीं है।
इस मामले में होमगार्ड कमांडेंट प्रीती शर्मा कहती है कि कई सुधार हुए है और बाकी सुधार तेजी से चल रहे हैं। शहर में मानक 5 हजार होमगार्ड्स का है और वर्तमान में 3 हजार से कम होमगार्ड्स मौजूद है। होमगार्डों की शिफ्ट में ड्यूटी की बात हुई थी, मगर जो चार घंटे वो काम करते हैं उसका एक्स्ट्रा भुगतान भी उन्हें किया जाता है। अवकाश को लेकर उच्च स्तर पर बातचीत का दौर जारी है। जल्द ही इसमें भी कुछ निर्णय आएगा।