December 26, 2025

संवाददाता

कानपुर। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान धनबाद के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के वैज्ञानिकों ने निर्माण क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण और पर्यावरण-अनुकूल शोध किया है। इस अध्ययन में नदी की रेत के टिकाऊ विकल्प को विकसित किया गया है, जिससे पर्यावरण संरक्षण और निर्माण कार्यों को लाभ मिलेगा। इस उपलब्धि से कानपुर नगर के नरवल क्षेत्र के बरादरी गाँव का नाम भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन हुआ है।
यह शोध प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल ‘कंस्ट्रक्शन एंड बिल्डिंग मैटेरियल्स (एल्सवियर)’ में प्रकाशित हुआ है। शोध पत्र का शीर्षक “सस्टेनेबल मोर्टार्स यूजिंग ओवरबर्डन-डेराइव्ड एम-सैंड एंड कोल बॉटम ऐश: मैकेनिकल प्रॉपर्टीज, ड्यूरेबिलिटी एंड लाइफ साइकिल असेसमेंट” है। 

यह अध्ययन डॉ. कुलदीप शर्मा – ग्राम बरादरी, नरवल, कानपुर नगर से संबंधित, प्रो. राहुल भारतीया और प्रो. सरत कुमार दास ने मिलकर किया है।
शोध में कोयला खनन से निकलने वाले ओवरबर्डन (खनन अपशिष्ट) से बनी एम-सैंड (मैन्युफैक्चर्ड सैंड) और थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाली बॉटम ऐश का उपयोग किया गया है। अध्ययन से पता चला है कि मोर्टार में 20 से 30 प्रतिशत तक बॉटम ऐश का उपयोग करने से उसकी मजबूती, टिकाऊपन और रासायनिक प्रतिरोध क्षमता में उल्लेखनीय सुधार होता है। इससे भवनों और अन्य संरचनाओं की आयु बढ़ती है।
इस शोध का सीधा लाभ यह है कि अब निर्माण कार्यों में नदी की रेत के बजाय खनन और बिजली घरों से निकलने वाले कचरे का उपयोग किया जा सकेगा। इससे नदियों में होने वाली अत्यधिक खुदाई कम होगी और पर्यावरण सुरक्षित रहेगा। नई निर्माण सामग्री अधिक मजबूत और लंबे समय तक चलने वाली होगी, जिससे मकान, सड़क और इमारतें ज्यादा सुरक्षित बनेंगी।
इस उपलब्धि पर क्षेत्र के सामाजिक एवं व्यापारिक संगठनों ने भी प्रसन्नता व्यक्त की है। उत्तर प्रदेश आदर्श व्यापार मंडल, कानपुर नगर के अध्यक्ष महेश वर्मा ने डॉ. कुलदीप शर्मा को बधाई देते हुए कहा कि यह शोध पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ निर्माण उद्योग के लिए भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि इससे भविष्य में टिकाऊ निर्माण को बढ़ावा मिलेगा।
साथ ही, औद्योगिक कचरे के सही उपयोग से प्रदूषण में कमी आएगी, निर्माण लागत पर नियंत्रण रहेगा और स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। कुल मिलाकर यह शोध पर्यावरण, समाज और निर्माण क्षेत्र- तीनों के लिए लाभकारी माना जा रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार इस शोध से नदी का खनन कम होगा, औद्योगिक कचरे का सही उपयोग होगा, निर्माण लागत नियंत्रित रहेगी और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। यह उपलब्धि ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकलकर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने का सशक्त उदाहरण है।
इस शोध का सीधा लाभ यह है कि अब नदी की रेत की जगह बिजली घरों से निकलने वाले कचरे का उपयोग निर्माण कार्यों में किया जा सकेगा। नई निर्माण सामग्री अधिक मजबूत और लंबे समय तक चलने वाली है, जिससे मकान, सड़क और इमारतें ज्यादा सुरक्षित रहेंगी।
साथ ही, औद्योगिक कचरे के सही उपयोग से प्रदूषण में कमी आएगी, निर्माण लागत पर नियंत्रण रहेगा और स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। कुल मिलाकर यह शोध पर्यावरण, समाज और निर्माण क्षेत्र- तीनों के लिए लाभकारी माना जा रहा है।