November 6, 2024

आ स. संवाददाता

कानपुर। उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ के सचिव पद को अनैतिक मानकर उसे चुनौती दे दी गयी है, संघ के सचिव को पत्र भेजकर शिकायतकर्ता ने उनकी ही कार्य पद्धिति को सवालों के घेरे में खडा कर दिया है। अलीगढ क्रिकेट संघ से जुडे रहे एक पूर्व पदाधिकारी ने यूपीसीए सचिव को पत्र भेजकर उनसे ही “सचिव” के पद पर अवैध रूप से काबिज होने और जनसामान्य को भ्रमित करने के लिए पूछा है। यही नही कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी से अवगत कराने हेतु उनको लिखा गया है। संघ के पदाधिकारियों की अनियमितताओं को दर्शाया गया है, जैसे 

संघ का कानूनी ढांचा जो चुनौती देने के लिए पहले पायदान पर है । पूछा गया है कि जब यूपीसीए भारतीय कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8 के अंतर्गत एक निजी कंपनी के रूप में पंजीकृत है। इस अधिनियम के तहत, “सचिव” जैसे पद का कोई अस्तित्व नहीं होता है। कंपनी के सभी निर्णय एमसीए में केवल निदेशकों के हस्ताक्षर और प्रमाण के आधार पर मान्य होते हैं।जबकि कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय में किए गए समस्त दस्तावेजों की जांच में यह पाया गया है कि यूपीसीए  में “सचिव” पद का कोई रिकॉर्ड या मान्यता एमसीए में दर्ज ही नहीं है। उन्होंने लिखा है कि‍ कई विभागों में जांच के दौरान जांच अधिकारी ने भी यह स्पष्ट किया था कि एमसीए केवल निदेशकों को मान्यता देता है और “सचिव” का पद संघ में कानूनी रूप से अमान्य है।पिछले कई वर्षों से आपने “सचिव” के रूप में जनता, खिलाड़ियों, और सदस्यों को भ्रमित करते हुए इस अवैध पद का उपयोग किया है। एमसीए के आधिकारिक रिकॉर्ड में सचिव पद का कोई प्रमाण न होने के बावजूद आपने इस पद का दुरुपयोग कर जनभावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है। वहीं बीते एक दो साल पूर्व ही सचिव के लैटर हेड पर पूर्व सचिव युधवीर सिंह को कारण बताओ नोटिस जारी किया और एफआईआर दर्ज की थी। इस प्रकरण में आपने झूठे आरोप लगाते हुए जाँच में शिकायतकर्ता का नाम पुलिस को सुझाया, जिसके चलते अनावश्यक रूप से पुलिस द्वारा पूछताछ का सामना करना पड़ा। फॉरेंसिक जांच में यह स्पष्ट हो गया कि पत्र पर हस्ताक्षर सचिव के ही थे, और यह प्रकरण एक सोची-समझी साजिश के तहत रचा गया था। जबकि यूपीसीए के अनुच्छेद संघ के चैप्टर 10 में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को सभी निर्णय लेने और संचालन की सर्वोच्च शक्तियाँ दी गई हैं। इस चैप्टर में यह स्पष्ट किया गया है कि निदेशक मंडल की शक्तियाँ किसी भी अन्य पदाधिकारी के अधिकारों से ऊपर हैं। ऐसे में, आपके द्वारा “सचिव” के पद पर बैठकर किसी प्रकार के निर्णय लेना और स्वयं को अधिकृत दिखाना न केवल अवैध है बल्कि यह धोखाधड़ी और सार्वजनिक विश्वास का गंभीर उल्लंघन है। यदि सचिव ऐसा नहीं करते हैं, तो इस धोखाधड़ी और जनता को भ्रमित करने के लिए हम उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए बाध्य होंगे। सचिव को पत्र भेजकर यह चुनौती दी गयी है कि समय रहते अपनी स्थिति स्पष्ट करें और जनसामान्य से माफी मांगे, अन्यथा यह मामला कानूनी मंच पर ले जाया जाएगा।

इस मामले में सचिव अरविन्द श्रीवास्तव से बात करने की कोशिश पूरी तरह से विफल रही। वहीं यूपीसीए के एक पदाधिकारी के अनुसार ये बहुत ही टेक्निकल विषय है इस बारे में आलाकमान से चर्चा की जाएगी उसके बाद ही किसी निष्कर्ष तक पहुंचा जाएगा।