कानपुर। आंखों के आसपास की मांसपेशियों में तनाव वाली बीमारी ब्लेफरोस्पाज्म का इलाज अब हैलट अस्पताल के नेत्र विभाग में संभव हो सकेगा । बोटुलिनम टॉक्सिन इंजेक्शन से इस रोग के मरीजों का इलाज करने में सौ प्रतिशत सफलता मिल सकेगी। इसके लिए अब नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. पारुल सिंह ने मरीजों का इलाज बोटुलिनम टॉक्सिन नामक इंजेक्शन से शुरू किया है।हैलट अस्पताल की नेत्र विशेषज्ञ डा.पारुल के अनुसार नगर व आसपास जिलों में अभी तक ब्लेफरोस्पाज्म बीमारी का किसी भी सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं था, लेकिन अब इसका इलाज कानपुर मेडिकल कॉलेज के हैलट अस्पताल के नेत्र रोग विभाग में किया जा रहा है। ये बीमारी ऐसी है कि जिसके होने से मरीजों की आंखे बार-बार झपकती रहती है।इसके कारण आदमी पलकों को झपकाता रहता है और आंखें बंद सी रहती हैं। ब्लेफरोस्पाज्म का इलाज कराने के लिए अब हैलट अस्पताल में कानपुर के अलावा आसपास के जिलों के भी मरीज आ रहे हैं। डॉ. पारुल सिंह ने बताया कि ये बीमारी जिस किसी को भी हो जाती है उसे काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए इसके इलाज के लिए सोचा और ऐसे मरीजों पर काम करना शुरू किया। अभी तक 1 माह के अंदर फिलहाल 6 मरीजों का इलाज किया जा चुका है। इन मरीजों को काफी आराम मिला है।डॉ. पारुल ने बताया कि ये इंजेक्शन आंखों और माथे की मांसपेशियों में लगाया जाता है। इस इंजेक्शन के मदद से ही दवा को सीधे मांसपेशियों में पहुंचाया जाता है। इसके लगने से मांसपेशियों तनाव से मुक्त हो जाती हैं और मरीजों की आंख आराम से खुलती और बंद होने लगती है।डॉक्टर के मुताबिक, ये दिक्कत अधिकतर 60 साल से ऊपर वालों में ही देखी जाती है। इसमें किसी भी प्रकार की दवा या ड्रॉप काम नहीं करता है। इसका इलाज भी अभी तक लखनऊ, दिल्ली जैसी जगहों पर ही हो रहा था, लेकिन अब कानपुर के हैलट अस्पताल में भी इसका इलाज संभव हो गया है।वैसे तो बोटुलिनम टॉक्सिन का इंजेक्शन न्यूरो व स्किन के डॉक्टर करते थे। स्किन में झुर्रियों को दूर करने के लिए इस इंजेक्शन का प्रयोग करते थे। वहीं, न्यूरों में भी मांसपेशियों के लिए इस इंजेक्शन को लगाते थे।डॉ. पारुल सिंह ने बताया कि इस इंजेक्शन का असर 6 माह तक ही रहता है। ये इंजेक्शन जब लगाते है उसके एक हफ्ते बाद से असर होना शुरू होता है। दो माह तक पूरी तरह से अपना असर दिखा देता है और फिर 6 माह बाद फिर से इस इंजेक्शन को लेना पड़ता है।