—अंग्रेजो ने डरकर एक दिन पहले ही दे दी थी फांसी।

आ स. संवाददाता
कानपुर। अंग्रेजों की गुलामी की बेड़ियों से देश को आजादी दिलाने के लिए भगत सिंह ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया था। अंग्रेजों ने डरकर तय तारीख 24 मार्च 1931 से एक दिन पहले 23 मार्च को ही भगत सिंह को फांसी दे दी थी। एक दिन बाद अखबारों में छपी खबरों के बाद देश को जानकारी मिल सकी कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दे दी गई। इसके बाद देश में काफी हंगामा हुआ था।
भगत सिंह का आज शहीदी दिवस है। 1931 में आज ही के दिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी। कोर्ट ने तीनों को फांसी दिए जाने की तारीख 24 मार्च तय की थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार को फांसी के बाद माहौल बिगड़ने का डर था, इसलिए नियमों को दरकिनार कर एक रात पहले ही तीनों क्रांतिकारियों को चुपचाप लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई थी। इन तीनों पर अंग्रेज अफसर सांडर्स की हत्या का आरोप था।
28 सितंबर, 1907 को अब पाकिस्तान में स्थित पंजाब के लायलपुर में बंगा गांव में जन्मे भगत सिंह महज 12 साल के थे, जब जलियांवाला बाग कांड हुआ। इस हत्याकांड ने उनके मन में अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा भर दिया था।
काकोरी कांड के बाद क्रांतिकारियों को हुई फांसी से उनका गुस्सा और बढ़ गया। इसके बाद वो चंद्रशेखर आजाद के हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए। 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ हुए प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजों ने लाठीचार्ज कर दिया। इस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय को गंभीर चोटें आईं। ये चोटें ही बाद में उनकी मौत का कारण बनीं।
इसका बदला लेने के लिए क्रांतिकारियों ने पुलिस सुपरिटेंडेंट स्कॉट की हत्या की योजना तैयार की। 17 दिसंबर 1928 को स्कॉट की जगह अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स पर हमला हुआ, जिसमें उसकी मौत हो गई।
8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिशकालीन भारत की सेंट्रल असेंबली में बम फेंके। ये बम जानबूझकर सभागार के बीच में फेंके गए थे, जहां कोई नहीं था।
बम फेंकने के बाद भागने की जगह वो वहीं खड़े रहे और अपनी गिरफ्तारी दी। करीब दो साल जेल में रहने के बाद 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी पर चढ़ा दिया गया। वहीं बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा मिली।
कानपुर शहर से शहीद भगत सिह के क्रांतिकारी जीवन से गहरा रिश्ता रहा है। कानपुर में उनका बार-बार आना-जाना रहता था। कानपुर से छपने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी के क्रांतिकारी अखबार प्रताप में नौकरी करते वक्त वे दिल्ली में साम्प्रदायिक दंगा कवर करने गए थे। दंगा दरियागंज में हुआ था। वे दिल्ली में सीताराम बाजार की एक धर्मशाला में रहते थे। किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि प्रताप से जुड़ने के चलते उन्हें समझ आया कि कलम की ताकत के बल पर बहुत कुछ किया और बदला जा सकता हैं।
कानपुर के महान पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी के अखबार प्रताप में भगत सिंह ने सदैव निर्भीक एवं निष्पक्ष पत्रकारिता की। सुतरखाना स्थित प्रताप प्रेस के पास तहखाने में ही एक पुस्तकालय भी था, जिसमें सभी जब्तशुदा क्रान्तिकारी साहित्य एवं पत्र-पत्रिकाएं उपलब्ध रहती थीं। भगत सिंह यहां पर बैठकर घंटों पढ़ते थे।
प्रताप प्रेस की बनावट ही कुछ ऐसी थी कि जिसमें छिपकर रहा जा सकता था। और फिर सघन बस्ती में तलाशी होने पर एक मकान से दूसरे मकान की छत पर आसानी से जाया जा सकता था। भगत सिंह ने प्रताप अखबार में बलवन्त सिंह के छद्म नाम से लगभग ढाई वर्ष तक कार्य किया। चन्द्रशेखर आजाद से भगत सिंह की मुलाकात विद्यार्थी जी ने ही कानपुर में कराई थी।