
संवाददाता
कानपुर। दीपावली के मौके पर बाजार में कम धुएं के नाम से महंगे बिकने वाले ग्रीन पटाखों के दावे वायु प्रदूषण के सामने बेअसर साबित हुए हैं।
रविवार को छोटी दीपावली की रात से ही पटाखों के धमाकों और धुएं ने शहर की हवा को इतना जहरीला बना दिया कि वायु गुणवत्ता सूचकांक गंभीर श्रेणी में पहुंच गया।
रविवार को बीते महीने का रिकार्ड तोड़ते हुए एक्यूआई लेवल 244 पर पहुंचा जो कि सोमवार व मंगलवार को 450 के पार रहा। चिंताजनक बात यह है कि प्रदूषण का स्तर केवल एक रात के लिए नहीं, बल्कि लगातार दो दिनों तक बना रहा, जिससे सांस के मरीजों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा।
एक्यूआई बढ़ने के बाद शहर की सड़कों पर धुंध सी छा गई। ऐसा लगा कि सारा शहर प्रदूषण की चादर में लिपट गया हो। जीटी रोड पर दृश्यता की बात करें तो वह महज 20 से 30 मीटर ही रह गई। आलम यह हो गया कि सड़कों पर लिखे मेट्रो स्टेशन के नाम व बोर्ड आदि को भी दूरी से पढ़ पाना मुश्किल हो गया।
रविवार को शहर का एक्यूआई लगभग 244 दर्ज किया गया था, जो पहले से ही खराब श्रेणी में आता है। हालांकि, दीपावली की शाम से ही पटाखों के जलने का सिलसिला शुरू हो गया और देर रात तक चलता रहा। इसका सीधा असर वायु गुणवत्ता पर पड़ा और एक्यूआई में तेजी से बढ़ोतरी दर्ज की गई। देर रात तक, एक्यूआई का स्तर 450 को पार कर गंभीर श्रेणी में पहुंच गया।
मंगलवार 21 अक्टूबर को दिन के समय हवा की गति में मामूली सुधार से एक्यूआई में कुछ गिरावट दर्ज की गई, लेकिन शाम ढलते ही एक बार फिर पटाखों के शोर के साथ प्रदूषण का स्तर बढ़ गया और एक्यूआई फिर से 400 के करीब पहुंच गया। यह गिरावट और चिंताजनक इसलिए है क्योंकि रविवार से पहले शहर का एक्यूआई 200 से नीचे संतोषजनक से मध्यम श्रेणी दर्ज किया जा रहा था।
वायु प्रदूषण बढ़ने में पीएम 2.5 के सूक्ष्म कणों का विशेष योगदान रहा। ये कण इतने बारीक होते हैं कि सीधे फेफड़ों में पहुंचकर खून में घुल जाते हैं और स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं। पटाखों के जलने, वाहनों के धुएं और अन्य स्रोतों से निकले कणों ने हवा में अपनी मात्रा बढ़ा ली, जिससे दृश्यता कम हो गई और सांस लेना दूभर हो गया।
इस साल दीपावली पर प्रदूषण को कम करने के लिए ग्रीन पटाखों की जमकर बिक्री हुई थी। हालांकि, जमीनी स्तर पर इन नियमों की अनदेखी हुई। आम लोगों का कहना है कि बाजार में अभी भी पारंपरिक पटाखे ही आसानी से उपलब्ध थे और ग्रीन पटाखों के बारे में जागरूकता का अभाव था। इसके अलावा, निर्धारित समय के बाद भी पटाखे फोड़े जाते रहे, जिससे प्रदूषण का स्तर बढ़ता चला गया।
वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि ग्रीन पटाखों के नाम पर पारंपरिक पटाखे ही महंगे दामों पर बेंचे गए हैं।
वायु गुणवत्ता में इस अचानक और तेज गिरावट का स्वास्थ्य पर तुरंत असर देखने को मिला। शहर के विभिन्न अस्पतालों और निजी क्लीनिकों में सांस की तकलीफ, खांसी, गले में जलन और आंखों में जलन की शिकायत लेकर मरीजों की संख्या बढ़ गई। विशेष रूप से अस्थमा और सीओपीडी जैसी सांस की बीमारियों से पीड़ित मरीजों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। डॉक्टरों ने इन समूहों को घर के अंदर रहने, मास्क पहनने और बाहरी गतिविधियों से बचने की सलाह दी है।






