February 5, 2025

आ स. संवाददाता 

कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के पादप रोग विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. एस के विश्वास ने सरसों फसल के रोग एवं कीड़ों से बचाव हेतु किसानो के लिए एडवाइजरी जारी की है। उन्होंने बताया कि तिलहनी फसलों में सरसों का विशेष स्थान है।

डॉ. विश्वास ने कहा कि इस समय माहू कीट या चेपा का प्रमुखता से सरसों की फसल पर आक्रमण होता है। उन्होंने बताया कि ये कीट पौधों के कोमल तनों, पत्तियों ,फूलों एवं नई पत्तियों से रस चूस कर उसे कमजोर एवं क्षतिग्रस्त करते हैं। 

डॉ. विश्वास ने बताया कि आसमान में बादल घिरे रहने से इसका प्रकोप तेजी से होता है। इस कीट के नियंत्रण के लिए एमिडाक्लोप्रीड 0.03 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें या फिर जैविक नियंत्रण हेतु फसल में दो प्रतिशत नीम के तेल को तरल साबुन में घोलकर छिड़काव करें। 

डॉ. विश्वास ने रोगों के बारे में बताया कि सरसों की फसल में काला धब्बा रोग भी लगता है। इसमें सरसों की पत्तियों पर छोटे-छोटे गहरे भूरे गोल धब्बे बनते हैं, जो बाद में तेजी से बढ़कर काले और बड़े आकार के हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि रोग की अधिकता में बहुत से धब्बे आपस में मिलकर बड़ा रूप ले लेते हैं। फल स्वरुप पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं। यह लक्षण फसल में दिखाई देते ही डाइथेन एम 45 के  0.2 प्रतिशत घोल के दो छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें।

विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी डॉ. खलील खान ने  कृषकों से अपील की है कि वे सरसों फसल की निगरानी अवश्य करते रहें, क्योंकि आसमान में बादल छाए रहने से सरसों की फसल में कीट और रोग आने की संभावना बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि फसल पर रोग या कीट आने पर प्रबंध करें, जिससे फसल को कीट और रोगों से बचाया जा सके।