April 16, 2025

आ स. संवाददाता 

कानपुर। 32 साल पुरानी घटना में 1993 में पुलिस लाइन में आगजनी व तोड़फोड़ करने के मामले में फंसे 9 पुलिसकर्मियों के खिलाफ चल रहा मुकदमा वापस लेने के मामले में कई कानूनी पेंच फंस रहे है। वरिष्ठ अधिवक्ताओं का कहना है घटना दंगे की परिधि में नहीं आती है, जिस कारण मुकदमा वापसी में पेंच फंसेगा। 

वर्ष 1993 में एक पुलिस कांस्टेबल के लापता होने के बाद अगले दिन उसका शव नाले में मिला था। जिसके बाद नाराज पुलिसकर्मियों ने रिजर्व पुलिस लाइन में तोड़फोड़, आगजनी कर दी थी, जिसमें 50 से 60 पुलिसकर्मियों के खिलाफ तत्कालीन आरआई ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी। 

चमनगंज बजरिया के नाला रोड में 14 नवंबर 1993 को हुए दंगे के दौरान सुरक्षा में लगे सिपाही राघवेंद्र सिंह लापता हो गए थे। 16 नवंबर 1993 को एक शव मोहम्मद अली पार्क के मेनहोल में मिला था। बाद में शव की पहचान राघवेंद्र सिंह के रूप में हुई थी। उसी दिन पोस्टमार्ट के बाद मृतक सिपाही का शव गार्ड आफ आनर के लिए पुलिस लाइन लाया गया था।
गार्ड आफ आनर के बाद पुलिसकर्मियों ने पुलिस लाइन में गाड़ियों में तोड़फोड़ कर टेंटों में आग लगा दी थी, पथराव भी किया था। इसमें कई अफसर घायल हो गए थे। जिस पर तत्कालीन आरआई शेर सिंह ने कोतवाली में 17 नवंबर 1993 को 50 से 60 पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था।
लेकिन पुलिसकर्मियों पर मुकदमा चलाने की अनुमति 10 अप्रैल 2003 को मिली थी। सीबीसीआइडी ने 9 पुलिसकर्मियों सुरेश चंद्र, अनीश अहमद, संतोष दीक्षित, शिवराज सिंह, राकेश कुमार, ओमप्रकाश दुबे, गंगाधर सिंह, श्योराज सिंह, संतोष सिंह के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया था।संतोष सिंह का निधन हो चुका है। 

दंगे से जुड़े मुकदमे के शासनादेश का हवाला देते हुए अभियोजन ने 10 दिसंबर 2024 को मुकदमा वापसी का प्रार्थनापत्र दिया था। सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता जितेंद्र कुमार पांडेय ने बताया कि मुकदमा फास्ट ट्रैक कोर्ट में विचाराधीन है। इसकी सुनवाई 23 अप्रैल को होगी।
दंगे में साथी की हत्या के बाद पुलिस लाइन में आगजनी, उपद्रव, तोड़फोड के मामले में शासन ने मुकदमा वापसी के आदेश दिए है, लेकिन मुकदमा वापसी में कई कानूनी पेंच सामने आ रहे हैं। 1993 में दर्ज मुकदमे में आरोपी पुलिसकर्मियों को विभागीय जांच में क्लीन चिट मिल गई, लेकिन सीबीसीआईडी की जांच में 9 पुलिसकर्मी दोषी पाए गए, जिनके खिलाफ 2024 में कोर्ट में आरोप तय हुए हैं।
4 माह पहले अदालत में अभियोजन की तरफ से शासनादेश का हवाला देते हुए मुकदमा वापसी की अर्जी दी गई थी। अधिवक्ताओं का कहना है कि यह मुकदमा दंगे की परिधि में नहीं आता है। इसलिए मुकदमा वापसी में पेच फंसेगा। हालांकि इस पर अदालत को ही अंतिम  निर्णय लेना है।