संवाददाता।
कानपुर। नगर में राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर का 51वां दीक्षांत समारोह शुक्रवार को आयोजित किया गया। इसमें मुख्य अतिथि उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण तथा ग्रामीण विकास राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति और विशिष्ट अतिथि भारत सरकार के संयुक्त सचिव (शर्करा) अश्विनी श्रीवास्तव उपस्थित रहे। दीक्षांत समारोह की शुरुआत स्वामी विवेकानंद को उनकी 161वीं जयंती पर पुष्पांजलि अर्पित कर व दीप प्रज्वलन कर किया गया। भारत सरकार के उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण और ग्रामीण विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने विभिन्न पुरस्कारों फैलोशिप, स्नातकोत्तर डिप्लोमा और प्रमाण पत्र प्राप्तकर्ताओं को अपना आशीर्वाद देते हुए उन्हें आगे और सीखने के लिए अपना उत्साह बनाए रखने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि आपने संस्थान में अपनी पढ़ाई पूरी कर ली है लेकिन सीखने की प्रकिया कभी खत्म नहीं होती है। तेजी से बदलते तकनीकी परिदृश्य के साथ, आपको अपने अस्तित्व और विकास के लिए खुद को उसके साथ रखना होगा। उन्होंने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि आपको एक आत्मनिर्भर चीनी उद्योग और देश विकसित करने में प्रमुख भूमिका निभानी होगी। उन्होंने कई नए पाठ्यक्रम शुरू करने और मूलभूत सुविधाओं और सेवाओं में महत्वपूर्ण बदलाव करने के लिए संस्थान के प्रयासों की भी प्रशंसा की। मुख्य अतिथि साध्वी निरंजन ज्योति ने कहा कि इस संस्थान को हम संस्थान नहीं बल्कि परिवार मानते हैं। 51 वर्ष का कार्यकाल बहुत बड़ा कार्यकाल होता है। यहां से शिक्षा ग्रहण करने वाले अपने संस्थान को कभी भूले ना। बहुत से छात्र ऐसे हैं जिन्होंने यहां से शिक्षा ग्रहण करने के बाद अलग-अलग संस्थानों में नौकरी कर रहे हैं या फिर अपना खुद का स्टार्टअप चला रहे हैं। ऐसे लोग भी अपने संस्थान से आज तक जुड़े हुए हैं। ऐसे छात्रों का मैं अभिनंदन करती हूं। उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास है कि यहां के बच्चे बाहर न जाए बल्कि बाहरी देश के बच्चे हमारे यहां आकर शिक्षा ग्रहण करें। अगर आज देश विकसित हो रहा है तो इसके पीछे नौजवानों का सबसे बड़ा सहयोग है। इसमें आप सभी की मेहनत है। आज हमारा देश 5वें स्थान पर पहुंच गया है, जब आप विदेश जाते हैं और बताते हैं कि मैं भारत से हूं तो आज लोग हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ते हैं। आज दूसरे देश अपने देश का लोहा मान रहे हैं। मोदी जी के कार्यकाल में यह सब संभव हो पाया है। एएनएसआई शर्करा प्रौद्योगिकी के अंतिम वर्ष में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले ललित मोहन, हिमांशु पांडेय, सैमसंग अकोरेडे को महात्मा गांधी मेमोरियल स्वर्ण पदक दिया गया। इसके अलावा इन लोगों को श्री सीवी सुब्बा राव एक्सीलेंस अवार्ड व एक्सीलेंस अवार्ड भी दिया गया। इसके अलावा एएनएसआई शर्करा अभियांत्रिकी के अंतिम वर्ष के प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले छात्र अंकुर वर्मा, मुदित राठी, गर्भजीत दहिया को एक्सीलेंस अवार्ड स्वर्ण पदक दिया गया। वहीं, औद्योगिकी किण्वन और अल्कोहल प्रौद्योगिकी के अंतिम वर्ष में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले अभिषेक मिश्रा, शुभम गर्ग और शुभम कुमार को भी इस अवार्ड से सम्मानित किया गया। शिक्षा प्रभारी अशोक गर्ग ने अपने संबोधन में 2020-21, 2021-22 और 2022-23 के उत्तीर्ण छात्रों को बधाई देते हुए कहा कि दीक्षांत समारोह के दौरान 745 फैलोशिप, स्नातकोत्तर डिप्लोमा और प्रमाण पत्र प्रदान किए जा रहे हैं। पहली बार किसी विदेशी छात्र, नाइजीरिया के सैमसन अकोरे एडियोय को शुगर टेक्नोलॉजी कोर्स में पहला स्थान हासिल करने पर वर्ष 2022-23 के लिए प्रतिष्ठित महात्मा गांधी स्वर्ण पदक दिया गया है। अशोक गर्ग ने कहा कि लड़कियां भी अब चीनी उद्योग में अपना करियर तलाश रही हैं। शुगर टेक्नोलॉजी की निधि राजपूत और क्वालिटी कंट्रोल कोर्स की सुश्री शिवानी गौतम को उनके सराहनीय प्रयासों के लिए क्रमश: “श्रीजी फ्यूचर लीडर अवार्ड” और “ग्लोबल केन शुगर सर्विस अवार्ड से सम्मानित किया गया। एनएसआई के निदेशक नरेंद्र मोहन ने कहा कि कई चीनी उत्पादक देशों के छात्रों को राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर ने अपनी ओर आकर्षित करने का काम किया है। उन्होंने संस्थान से उत्तीर्ण होने वाले छात्रों को उद्यमी बनने का आह्वान किया, ताकि वे नौकरी चाहने वालों के बजाय नौकरी प्रदाता बन सकें। निदेशक ने कहा कि चीनी उद्योग अब, अभिनव उत्पादों को विकसित करने के लिए बहुत सारी संभावनाएं प्रदान कर रहा है। इसके लिए छात्रों द्वारा स्टार्ट अप स्थापित किए जा सकते हैं और जिसके लिए संस्थान उन्हें तकनीकी सहायता भी प्रदान कर सकता है। उन्होंने कहा कि यह उल्लेखनीय है कि क्यूबा और इंडोनेशिया जैसे चीनी उत्पादक देश जो कभी तकनीकी और अन्य रूप से मजबूत थे और विश्व पटल पर चीनी उद्योग का नेतृत्व करते थे, अब सहयोग के लिए संस्थान की ओर देख रहे हैं।पिछले तीन वर्षों में कोविड जैसी गम्भीर समस्याओं के बावजूद हमने इंडोनेशिया, केन्या, नाइजीरिया, युगाण्डा के लगभग 100 लोगों को नियमित पाठ्यक्रमों या विशिष्ट लघु अवधि के कार्यक्रमों द्वारा प्रशिक्षित किया।