संवाददाता। कानपुर। राष्ट्रीय शर्करा संस्थान के निदेशक नरेंद्र मोहन ने बताया कि राष्ट्रीय शर्करा संस्थान में 20 करोड़ रुपये के बजट से बायोफ्यूल और स्पेशलिटी शुगर पर रिसर्च होगी। बायोफ्यूल के लिए मुख्य रूप से कृषि अपशिष्ट या बचे हुए अनाज से ग्रीन हाइड्रोजन विकसित करने का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने बताया कि उपभोक्ता व इंडस्ट्री की मांग के अनुसार स्पेशलिटी शुगर तैयार करने के लिए इस पर हम लोग शोध करेंगे। इसके लिए संस्थान में दो सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित किए गए हैं। यह शोध लगभग तीन साल तक चलेगी। उन्होंने बताया कि इस सेंटर में छात्र-छात्राओं के अलावा यंग इनोवेटर्स और इंडस्ट्री के विशेषज्ञ भी आकर शोध कर सकेंगे। सेंटर में चुकंदर, मीठी ज्वार, मक्का के अलावा कसावा से भी इथेनॉल विकसित करने की तैयारी है। इसके लिए आईसीएआर-भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान और आईसीएआर-भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी हुआ है। इस शोध के लिए संस्थान में एक अत्याधुनिक प्रयोगशाला स्थापित की गई है। जिसका शुभारंभ गुरुवार को संस्थान के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने फीता काटकर किया। प्रयोगशाला में रिसर्च से जुड़े सभी उपकरण उपलब्ध हैं। प्रो. नरेंद्र मोहन ने बताया कि इस शोध से चीनी की गुणवत्ता तो उन्नत होगी ही इसके साथ ही अपना देश भी आत्मनिर्भर होगा और निर्यात बढ़ेगा। क्योंकि भविष्य में ग्रीन हाइड्रोजन ही ईधन का बेहतर विकल्प साबित होगा। उन्होंने कहा कि जहां तक चीनी उत्पादन का सवाल है, किसी भी तकनीकी सहायता के लिए संस्थान हमेशा से ही चीनी उद्योग की पहली पसंद रहा है। चीनी की गुणवत्ता में बदलाव को ध्यान में रखते हुए, विभिन्न प्रकार की चीनी के उत्पादन और उनकी उपभोक्ता पैकिंग पर उद्योग को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए विशिष्ट चीनी उत्कृष्टता केंद्र भी बनाया जायेगा। हमारे पास पहले से ही विशिष्ट शर्करा प्रभाग और प्रायोगिक चीनी मिल हैं, लेकिन लगभग 5 करोड़ की लागत से कुछ उपकरण व अन्य सुविधाएं जोड़ी जाएंगी। इस मौके पर डॉ. सुधांशु मोहन, महेंद्र कुमार यादव समेत अन्य वैज्ञानिक मौजूद रहे।