संवाददाता।
कानपुर। नगर मे गणेश चतुर्थी को लेकर तैयारी शुरू हो गई है। नगर में लोग अलग-अलग जगह पर गणेश चतुर्थी के अवसर पर मूर्तियों को रखकर पूजन करते हैं। मूहर्त के अनुसार गणेश विसर्जन के कार्यक्रम भी किए जाते हैं। नगर में सैकड़ो जगह पर सार्वजनिक तौर से गणेश विसर्जन के भव्य कार्यक्रम होते हैं। इसके अलावा लोग अपने घरों में भी गणेश मूर्ति का पूजन कर उन्हें विसर्जन करते है।गणेश मूर्ति को बनाने वाले लोग कानपुर के सबसे बड़े मूर्ति के बाजार गोल चौराहे के पास दुकान सजने लगे हैं। लेकिन इस साल गणेश मूर्तियों को बनाने वालों ने मूर्ति में किए जाने वाले रंग-बिरंगे रंगों को लेकर खास बात बताइए। दुकानदारों ने बताया की मूर्ति में उन हल्के वाटर कलर का इस्तेमाल किया जा रहा है ,जो किसी भी तरह से पानी को दूषित नहीं करता है। गणेश चतुर्थी पर गणेश जी मूर्तियों को रखने वाले लोग पूजन के बाद विशेष मुहूर्त पर समय अनुसार मूर्तियों का विसर्जन करते हैं। कई बार यह सवाल उठे की नदियों में विसर्जन करने से जल दूषित होता है। इसके बाद जिला प्रशासन के निर्देशानुसार कृत्रिम तालाबों में विसर्जन की शुरुआत हुई। विशेष अभियान के तहत लोगों को जागरूक करने के लिए भूमि विसर्जन करने की अपील भी लोगों से की जाती रही। लेकिन गणेश मूर्तियों में इस्तेमाल होने वाले पेंट को लेकर सवाल उठाते रहे। अब उस पर भी मूर्ति बनाने वालों ने विराम लगा दिया है। दरअसल इस साल मूर्तिकार ने बताया की गणेश प्रतिमा में इस्तेमाल होने वाले या अन्य प्रतिमाओं में इस्तेमाल होने वाले रंगों में अब वाटर कलर का इस्तेमाल किया जाता है। मूर्ति बनाने वाले विजय ने बताया कि लोग अब स्कूल में प्रयोग किए जाने वाले वाटर कलर से ही मूर्ति क्यों रंगों को भरने का काम करते हैं। कोई भी अब मूर्तियों को निखारने सजाने के लिए पेंट का इस्तेमाल नहीं करता। उन्होंने बताया इसके अलग-अलग कारण है, क्योंकि पेंट बेहद महंगा भी पड़ता था और वाटर कलर उसके मुकाबले सस्ता पड़ता है। उन्होंने बताया कि वाटर कलर हल्का होता है और पानी में घुलने के बाद पानी को दूषित नहीं करता है। नगरीय इलाके से लेकर कानपुर के दक्षिणी इलाके तक सैकड़ो भाव और बड़े गणेश चतुर्थी पर कार्यक्रम किए जाते हैं। 19 सितंबर 2023 को गणेश चतुर्थी पर्व की शुरुआत होगी इसके बाद से अलग-अलग मुहूर्त पर सार्वजनिक स्थानों से लेकर घरों में रखे हुए गणेश जी की मूर्तियों को लोग विसर्जन करने के लिए ले जाते हैं। शहर में पंडालून में सजी बड़ी-बड़ी मूर्तियां को भी विसर्जन किया जाता है गंगा किनारे बने घाटों के पास कई जगह कृत्रिम तालाब बनाए जाते हैं इसके अलावा लोग गंगा में भी मूर्ति विसर्जन करते हैं। लेकिन मूर्तिकारों के मुताबिक गंगा में वाटर कलर जल को दूषित नहीं करेगा। और मिट्टी की बनी हुई मूर्तियां पानी में घुल जाएंगी। मूर्ति बनाने वाले लोग कानपुर शहर के गोल चौराहे के पास मूर्तियों की दुकान सजाते हैं। 100 से अधिक दुकानें यहां पर गणेश चतुर्थी के पहले सज गई हैं। मूर्ति का काम करने वाले लोग शहर के आसपास से जिलों से आकर यहां पर मूर्ति बेचने के लिए पहुंचे हैं। कन्नौज से आए मूर्तिकार आनंद ने बताया की मूर्ति बनाने का काम और खास करके गणेश चतुर्थी के लिए चार महीने पहले से ही काम शुरू कर देते हैं। उन्होंने बताया कि गणेश चतुर्थी पर बड़ी-बड़ी और भव्य मूर्तियां का इस्तेमाल होता है, लोग बड़ी मूर्तियां मांगते हैं ,इसलिए उन्हें बनाने में समय लगता है। उन्होंने बताया कि कई लोग ऐसे भी होते हैं ,जो दूर दराज से आते हैं ।मूर्ति बनाने के लिए पहले से ही ऑर्डर दे जाते हैं। मूर्ति बनाने वाले दुकानदारों से बात करने पर पता चला कि ज्यादातर परिवार मूर्ति का काम करने वाले ऐसे हैं ,जो कई पीढ़ियां लगातार मूर्तियों को बनाने का काम कर रहे हैं। कई दुकानदार अपने पूरे परिवार के साथ यहां पहुंचे हैं। जिनमें महिलाएं भी शामिल हैं। बात करने पर दुकानदारों ने बताया कि उनकी तीन से चार पीढ़ियां लगातार मूर्ति बनाने का ही काम करती आई है। गणेश चतुर्थी से लेकर दिवाली में मिलने वाली मूर्तियां और नवरात्रि में दुर्गा मूर्तियों का काम भी लगातार करते हैं।