November 22, 2024

संवाददाता।
कानपुर। नगर में इन दिनों बारिश के बाद डेंगू का हमला काफी तेज होता जा रहा है। रोजाना जिले में 10 से 12 मरीज डेंगू के मिल रहे हैं। लेकिन, इस वायरस से घबराने की जरूरत नहीं है। डॉक्टर के मुताबिक, डेंगू वायरस का हमला जरूर तेजी से हो रहा है, लेकिन इससे नुकसान बहुत कम हो रहा है। मरीज तेज बुखार में हॉस्पिटल जरूर आ रहा है, लेकिन उसके अंदर खतरे के चांस बहुत कम दिखते है।उर्सला हॉस्पिटल के वरिष्ठ सर्जन डॉ. शैलेंद्र तिवारी ने बताया कि डेंगू से होने वाले खतरे अब दिन पर दिन कम होते जा रहे हैं। 2019 के बाद से इस खतरे को कम देखा जा रहा है। पहले डेंगू के मरीजों में यदि प्लेटलेट्स घट जाती थी तो उसकी हालत को सामान्य करने में काफी समय लग जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। लोगों में डेंगू वायरस अटैक जरूर कर रहा है, लेकिन यह नहीं कह सकते कि मरीज गंभीर अवस्था में अस्पताल आ रहे हैं। डॉ. शैलेंद्र तिवारी ने बताया कि इस डेंगू में मरीज में प्लेटलेट्स घटने की शिकायत कम आ रही है। आम तौर पर पहले के समय डेंगू होने पर सबसे पहले मरीज की प्लेटलेट्स घट जाती थी, जिसके कारण मरीज गंभीर अवस्था में चला जाता था, लेकिन अब प्लेटलेट्स न घटने की वजह से मरीज जल्दी रिकवर हो जाता है। आमतौर पर बुखार आने के बाद ठीक होने पर जितना समय लगता है, उतना ही समय डेंगू वायरल में भी लग रहा है। 5 दिन के अंदर मरीज ठीक हो जा रहा है। डॉ. शैलेंद्र तिवारी के मुताबिक डेंगू मरीजों का आंकड़ा भले ही 225 के पार पहुंच गया हो लेकिन भर्ती होने वालों की संख्या 40 से 50 के करीब रही है। यह एक महीने का आंकड़ा है। भर्ती होने वाले मरीजों में तेज बुखार की समस्या थी। इसके अलावा अन्य कोई भी दिक्कत नहीं थी। डॉक्टर के मुताबिक, जब कोई नया वायरस आता है तो आपके शरीर को ज्यादा नुकसान पहुंचता है, लेकिन उसके बाद आपकी बॉडी उस वायरस से लड़ने के लिए तैयार हो जाती है। इसका जीता जागता उदाहरण कोविड है। पहले कोविड हो जाने पर लोग काफी परेशान होते थे, लेकिन अब कोविड के लिए सभी तैयार है। अगर किसी को कोविड हो भी जाता है तो वह बहुत जल्द ठीक हो जाता है। चिकित्सकों की माने तो पहले के समय में जब मरीज को डेंगू होता था तो सबसे ज्यादा असर प्लेटलेट्स पर पड़ता था और एक मरीज में कम से कम 10 से 15 यूनिट प्लेटलेट्स लग जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अगर किसी मरीज की प्लेटलेट्स घट भी रही है तो वह दवा और खान-पान के माध्यम से कंट्रोल हो जा रही है। बहुत ही कम ऐसे मरीज होंगे, जिन्हें प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत पड़ रही है। 

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