November 24, 2024

जिन मरीजों को गुर्दे, लीवर, शुगर, बीपी जैसी शिकायतें है उनको सबसे ज्यादा बुखार अटैक कर रहा।

संवाददाता।
कानपुर।
नगर में दिन पर दिन वायरल फीवर के मरीज बढ़ते जा रहे हैं। पिछले 10 दिनों के अंदर मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि देखने को मिली है। चिकित्सकों की माने तो वायरल फीवर में कम से कम 30% मरीजों में वृद्धि हुई है। यह फीवर मरीज के चेस्ट और लीवर को बहुत जल्दी अफेक्टेड कर रहा है। कानपुर मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों के मुताबिक दो माह के अंदर 5000 से अधिक मरीज बुखार की चपेट में आ चुके हैं। ये आंकड़ा सरकार अस्पताल का है यदि घरों में जिन लोगो को बुखार आ रहा है उनकी जांच की जाए तो ये आंकड़ा 4 गुना बढ़ जाएगा। रोजाना कानपुर मेडिकल कॉलेज के हैलट अस्पताल में बुखार के करीब 100 से 150 मरीज आते है। इसके अलावा उर्सला हॉस्पिटल, काशीराम हॉस्पिटल, सीएचसी, पीएचसी व प्राइवेट अस्पतालों का आंकड़ा लिया जाए तो यह 10 हजार की संख्या भी पार कर सकता है। कानपुर मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. बीपी प्रियदर्शी ने बताया कि इस समय हवा में कई तरह के वायरल फैले हुए है। जब मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाता है तो हवा में फैला दूसरा वायरस फिर से अटैक कर देता है। इस कारण लोगों को पलट-पलट कर बुखार आ रहा है। वहीं जिन मरीजों को गुर्दे, लीवर, शुगर, बीपी जैसी शिकायतें है उनको सबसे ज्यादा बुखार अटैक कर रहा। इन लोगों की जरा सी लापरवाही इन पर भारी पड़ सकती है। ऐसे मरीजों के अंदर बुखार जल्दी-जल्दी अटैक करता है। क्योंकि इनकी शारीरिक क्षमता कम होती है। इमरजेंसी में आने वाले मरीज को तेज बुखार के साथ-साथ उनका बीपी एकदम लो पाया जा रहा है। यह वह मरीज होते हैं जो सही समय पर इलाज नहीं शुरू करते हैं। मेडिकल स्टोर से दवा लेकर खाते हैं और बाद में उन्हें अन्य दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है, जब वायरस अटैक करता है तो ऐसे में आम दवा बुखार वाली असर नहीं करती है और इन दवा का सेवन करने से यह वायरस आपके चेस्ट में इन्फेक्शन फैला देता है।
कानपुर मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के डॉ. एसके गौतम ने बताया कि जो लोग शुरुआत में अपना इलाज ठीक तरह से नहीं करते हैं, उनको चेस्ट के अलावा लीवर से संबंधित दिक्कतें भी हो जाती हैं। यदि लीवर में इंफेक्शन फैल गया तो उसमें सूजन आ जाती है। ऐसे में मरीज का शरीर कमजोर होता जाता है और कमजोर शरीर में संक्रमण का खतरा अधिक रहता है। कानपुर मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. विशाल कुमार गुप्ता ने बताया कि इन दिनों हाई ग्रेड फीवर के मरीज काफी संख्या में बढ़ गए हैं। इसका कारण है कि हवा में कई तरह के वायरस है, जिसके कारण लोग हाई ग्रेड फीवर की चपेट में आ रहे हैं। इस समय डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया के साथ-साथ अन्य जो वायरस गर्मियों में नष्ट हो जाते हैं। वह भी बरसात के बाद वातावरण में नमी आते ही फिर से जीवित हो गए हैं। इसके कारण सारे वायरस वातावरण में पूरी तरह से घुल चुके हैं। डॉ. विशाल गुप्ता ने बताया कि जब किसी व्यक्ति को बुखार आता है तो उसे पेरासिटामॉल या अन्य कोई दवा देकर उसे कंट्रोल कर सकते हैं, लेकिन जब हाई ग्रेड फीवर आता है तो वह सीधे 102, 103, 104 तक पहुंच जाता है। इसके कारण मरीज का शरीर अंदर से बिल्कुल टूट जाता है। इसको ठीक होने में भी कम से कम 5 से 7 दिन लगते हैं। यह बुखार आम दवा देने से नहीं जाता है। इसका ट्रीटमेट अलग होता है, जब बुखार चढ़ता ही जाता है तो ऐसे में मरीज को भर्ती करना पड़ता है। इस बुखार में मरीज को चक्कर आना, उल्टी होना, चिड़चिड़ापन आम बात है। जिन मरीजों को हाई ग्रेड फीवर की समस्या है उनको सांस लेने में भी काफी समस्या हो रही है। ऐसे में कुछ मरीजों को ऑक्सीजन सपोर्ट भी देना पड़ता है, जब मरीज बुखार आने के बाद लापरवाही करता है तो उसके चेस्ट में संक्रमण फैल जाता है। इसके कारण मरीजों को सांस से संबंधित दिक्कत होने लगती है और जब शरीर में पानी की कमी होती है तो फिर चक्कर आना और कमजोरी महसूस होने लगती है। ऐसे मरीजों की संख्या करीब 10 प्रतिशत होगी। हवा में फैले बैक्टीरिया के कारण हर उम्र का व्यक्ति इससे ग्रसित है। एक तरफ बड़ों में यह वायरल अटैक करने के बाद उनके जोड़ो में दर्द और फेफड़ों में संक्रमण फैला रहा है तो वहीं, बच्चों के दिमाग में संक्रमण फैल रहा है। इस कारण बच्चों के अंदर झटके आने की समस्या देखने को मिल रही है।बाल रोग विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. यशवंत राय ने बताया कि यह बुखार बच्चों के दिमाग और उनके फेफड़ो पर अटैक कर रहा है। बुखार आने के बाद बच्चों के सिर में संक्रमण फैलता है या फिर उनके फेफड़ों में संक्रमण हो जाता है। उन्होंने बताया कि तेज बुखार के साथ-साथ बच्चों में झटके आने की समस्या आ रही है। ऐसे मरीजों को तत्काल भर्ती करके इलाज शुरू करना पड़ता है। इस चीज को गंभीरता से लेना पड़ता है, क्योंकि यह बीमारी बच्चों में आगे चलकर बड़ी समस्या बन सकती है। 

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