November 22, 2024

संवाददाता।
कानपुर। नगर में जिला महिला अस्पताल, डफरिन के सिक न्यू बोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) इंचार्ज व वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. शिव कुमार ने नर्सों व स्टाफ को बताया कि बर्थ एसफिक्सिया या जन्म श्वासरोध एक ऐसी दशा है, जिसमें पैदा होने के बाद नवजात न तो रोता है और न ही सांस लेता है। यह बच्चे के मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी के कारण होता हैं। ऑक्सीजन की कमी मुख्यता बच्चे के मुंह में गंदा पानी चले जाने, कम वजन का होने, समय से पहले पैदा होने या जन्मजात दोष होने की वजह से हो सकती है। इस दौरान यदि नवजात को तुरंत उचित देखभाल नहीं मिलती है तो उसकी जान जाने का भी खतरा हो सकता हैं।  डॉ. कुमार ने मंगलवार को जिला महिला अस्पताल, डफरिन में नवजात शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर को सम्बोधित किया। प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन जिला स्वास्थ्य समिति द्वारा अलग- अलग बैच में किया जा रहा है। इस प्रशिक्षण में प्रत्येक प्रखंड से दो-दो स्टाफ नर्स व एएनएम को प्रशिक्षित किया गया। यह प्रशिक्षण अस्पताल के चिकित्सकों व उत्तर प्रदेश तकनीकी सहयोग इकाई (यूपीटीएसयू) संस्था के तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा दिया जा रहा है। इस दौरान एसएनसीयू में ले जाकर प्रायोगिक (प्रैक्टिकल) रूप से समझाया भी जाता है।प्रशिक्षण की शुरुआत में डॉ. शिव कुमार ने बताया नवजात शिशु सुरक्षा कार्यक्रम का उद्देश्य शिशु परिचर्चा और पुनर्जीवन में स्वास्थ्य कार्यकर्ता को प्रशिक्षित करना है। इस कार्यक्रम का शुभारंभ जन्म के समय परिचर्या (नर्सिंग), हाइपोथर्मिया से बचाव, स्तनपान शीघ्र आरंभ करना तथा बुनियादी नवजात पुनर्जीवन के लिए किया गया है। वरिष्ठ सलाहकार व प्रशिक्षक डॉ. अरविन्द कुमार ने बताया नवजात में जन्म श्वासरोध होने का मुख्य कारण बच्चे के मुंह में गंदा पानी चला जाना है। उन्होंने बताया कि ऐसे में इस समस्या से बचाव के लिए बच्चे की स्थिति बदल देनी चाहिए ताकि बच्चा उल्टी कर सके और गंदा पानी बाहर निकल सके। इसके अलावा बच्चा जैसे ही बाहर आए तो बच्चे का मुंह और नाक साफ कपड़े से साफ कर देना चाहिए ताकि जो भी गंदा पानी है वह बाहर आ सके और बच्चा आसानी से सांस ले सके। साथ ही नवजात को मशीन के द्वारा भी ऑक्सीजन दी जा सकती हैं ताकि शिशु आसानी से सांस ले सके। वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी व प्रशिक्षक डॉ. कल्पना चतुर्वेदी ने बताया कि जन्म के पहले एक घंटे में नवजात शिशुओं की उचित देखभाल की सबसे अधिक जरूरत होती है, क्योंकि यह एक घंटा नवजात के लिए काफी मुश्किल भरा होता है। जरा सी चूक शिशु की मृत्यु का कारण बन सकती है। एसफिक्सिया की वजह मस्तिष्क को हमेशा के लिए क्षति हो सकती है और इसकी वजह से जीवन पर्यन्त दिव्यांगता हो सकती है। उन्होंने बताया कि सामान्य प्रसव करवाते समय यदि मां काफी थक गई है या इसके लिए अक्षम हो गई है, तो बर्थ एसफिक्सिया से बचने के लिए सिजेरियन डिलीवरी को वैकल्पिक तौर पर चुना जा सकता है। यूपीटीएसयू संस्था की विशेषज्ञ डॉ. सुदिप्ता ने बताया कि जन्म के शुरुआती एक घंटे के भीतर शिशुओं के लिए स्तनपान अमृत समान होता है। यह अवधि दो मायनों में अधिक महत्वपूर्ण है। पहला यह कि शुरुआती दो घंटे तक शिशु सर्वाधिक सक्रिय अवस्था में होता है। इस दौरान स्तनपान की शुरुआत कराने से शिशु आसानी से स्तनपान कर पाता है। सामान्य एवं सिजेरियन प्रसव दोनों स्थितियों में एक घंटे के भीतर ही स्तनपान कराने की सलाह दी जाती है। इससे शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। इससे बच्चे का निमोनिया एवं डायरिया जैसे गंभीर रोगों में भी बचाव होता है। 

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