September 20, 2024

कानपुर। आज नगर में हजारों की संख्या में भाद्रपद माह में गणेश जी का आवाहन कर गणेश उत्सव पंडालों में मनाया जाता है लेकिन आज से दो तीन दशक पहले गिने चुने स्थानों में सामुहिक पंडाल लगाकर उत्सव मनाया जाता था उनमे से ही एक देवनगर क्षेत्र स्थित दो सौ वर्ष से भी अधिक प्राचीन चंद्रिका देवी मंदिर प्रांगण में  आज से पच्चीस वर्ष पूर्व से गणेश उत्सव मनाया जा रहा है। आयोजन कमेटी के कार्यकर्ता अजय द्विवेदी बताते है। यह पहले से ही पौराणिक सिद्ध स्थान है और यहां आयोजन के प्रारम्भ होते ही प्रथम वर्ष से ही उत्सव में शामिल भक्तों के कष्टों को हरने और बाधाओं को दूर करने के लिए प्रशिद्ध होने लगा। शहर का यह एकमात्र गणेश पण्डाल है जिसमें पुराण कथा का आयोजन प्रतिदिन किया जाता है। यही नहीं इस गणेश महोत्सव पण्डाल में किसी भी आयोजक का नाम पत्रावली में नही प्रदर्शित किया जाता है इसमें सभी देवी देवताओं के नामों पर ही आयोजक मण्डल का नाम छपवाया जाता है। लेकिन यहां होने वाला गणेश महोत्सव का आयोजन विशेष महत्व रखता है। यहां सुनाई जाने वाली गणेश पुराण कथा से जुड़ी कई मान्यता भी हैं। गणेश चतुर्थी से शुरू होने वाली यह कथा मूर्ति के विसर्जन के दिन तक चलती है।
प्रतिदिन शाम 3:30 बजे श्री गणेश पुराण कथा शुरू की जाती है। अलग-अलग दिनों में अलग-अलग लीलाओं को सुनने के लिए भक्त यहां पहुंचते हैं। कथा वाचक आचार्य श्री बलवंत भाऊ शास्त्री पटवर्धन ने बताया की गणेश पुराण कथा के दौरान यहां पर कई  कार्यक्रम होते हैं।कानपुर शहर में गणेश पुराण कथा के साथ गणेश महोत्सव का आयोजन देवनगर में किया जा रहा है। यह शहर का मात्र एक ऐसा स्थान है, जहां गणेश पुराण की कथा का वर्णन किया जाता है। 10 दिनों तक यहां गणेश जी के जन्म से लेकर उनकी छठी और विवाह तक के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। विशेष मान्यता यह है कि यहां श्री गणेश भगवान की छठी का प्रसाद और हल्दी का प्रसाद ग्रहण करने वालों को पुत्र व संतान की प्राप्ति होती है।
मन्दिर के बारे में आयोजन कर्ता ने बताया कि यहां गणेश पुराण में हल्दी प्रसाद और छठी का प्रसाद लेने के लिए दूसरे शहरों से भी लोग आते हैं। गणेश जी के जन्म के बाद छठी के प्रसाद का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि निसंतानों को संतान की प्राप्ति होती है। ऐसे ही हल्दी का प्रसाद ग्रहण करने से मान्यता है कि जिन कन्याओं और लड़कों का विवाह में बाधा होती है, वह दूर हो जाती है। इसलिए यहां छठी व हल्दी का प्रसाद लेने के लिए अलग-अलग शहरों से लोग भारी संख्या में आते और प्रसाद ग्रहण करते हैं। साथ ही नगर के गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति प्रतिदिन रहती है।

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